Friday, 23 March 2018

नहीं चाहता

अब मैं किसी से दिल लगाना नहीं चाहता
अपने दुखों को फिर से बताना नहीं चाहता
किसी की याद में डुबकियां अब क्यों लगाऊं
गहराई में जाकर जब मुझे उबरना नहीं आता


मासूम दिल से कैसे पूछूँ सवाल आंखों की
बिना कुछ कहे आंसू बहाना अब नहीं आता
सिसकियां खूब ली हैं आईने के सामने मैंने
फिर से अब तस्वीर सामने लाना नहीं चाहता

किसी की आहट में छिपकर भी क्या करूँगा
बंद आंखों से अक्स अब देखना नहीं आता
बारिश में भींगने से कांप जाती है रूह भी अब
सितारों के साथ मुलाकातें करना नहीं चाहता

संवेदना शून्य आंखों में अब आंसू कैसे आएं
किसी की बात करने में रस-बखान नहीं आता
जिंदगी की कहानी लिखकर शायद चैन मिले
क्योंकि जिंदगी बंद किताब होनहीं चाहता
-प्रभात 

2 comments:

  1. शब्द और भाव दोनों कहीं से किसी से कम नही..सब कुछ लाजवाब...

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    1. धन्यवाद आपको हृदय से

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