Monday 29 October 2012


बनावटी चीजों में आस्था रखने वाले बहुत सारे लोग मिलतें है, परन्तु वास्तविक चीजों के प्रति लोगों का झुकाव बहुत कम होता है..

यह सत्य सबको पता है कि पुष्प केवल अपने प्राकृतिक रूप में ही खिला  हुआ अच्छा लगता है और उसे उसका उसी रूप में, प्रकृति के साथ ही आनंद लिया जा सकता है,
तो जिस प्रकार से पुष्प पेड़ों की कोमल टहनियों में खिले अच्छे लगते हैं, उसी प्रकार से अगर हम वास्तविकता को जानें और देखें तो वास्तविक और यथार्थमय जिन्दगी को इसके काल्पनिक रूप में भी जीया जा सकता है.....

बनावटी/ढोंग प्रवृत्ति को अपनाने तथा मानने वाले शायद यह भूल जाते है कि यह बनावटीपन केवल कुछ समय के लिए ही अच्छा लगता है,
जैसे यदि फूल को पेड़ों से अलग कर, कहीं बाहर सजा दें तो वे चंद मिनटों में स्वतः ही मुरझा जातें है,उसी प्रकार अगर इस बनावटीपन की जिन्दगी में कोई रहता है, विश्वास करता है तो इसमें केवल कुछ ही समय तक रहा जा सकता है, उसके बाद कुछ समय बाद स्वतः ही आभास हो जाता है, की वास्तविकता कुछ और है और यह सदा स्थिर रहता है....


सार यह है, कि कोई देखने में बहुत सुन्दर हो परन्तु उसका चरित्र (जीवन में जब सदविचार और सद्कर्म में एकरूपता आ जाये, यानी मनुष्य अपने ही कृत्य में मन, वचन और कर्म की एकरूपता ले आये, चरित्र कहते है) अच्छा न हो तो वह सुन्दरता व्यर्थ होती है, क्योंकि यह सुन्दरता केवल कुछ वर्षों तक ही होती है, वृद्धावस्था में सबकी सुन्दरता एक जैसी हो जाती है परन्तु अगर चरित्र जो जीवन में कमाई गयी संपत्ति से महत्वपूर्ण होता है, अच्छा हो तो यह सदा के लिए होता है और इससे जीवन में सुख और शांति संतुलन से मिलती है.

2 comments:

  1. very nice Prabhat ! I hope you will keep us enlighted through beautiful and awakening writing skill......thanks for your writings. Really highly adorable.

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  2. मुझे मेरे लेखन शैली की ओर और प्रेरित करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आगे भी सहयोग अपेक्षित है.

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