पहले तो हम अपनी रंग-बिरंगी चम्पक की पुस्तक में "चीनी का घोटाला" आदि, नाम से लिखी हुई मनोरंजक कहानिया पढ़ते थे
उस समय समझ इतनी नहीं थी की घोटाला का मतलब क्या होता है, फिर भी चित्रों के माध्यम से कुछ बातें समझ आ ही जाती थीं........
आज तो हम रोज ही अखबार में यही पढतें है कि फला मंत्री ने घोटा लगा लिया है, अर्थात करोडों का घोटाला कर लिया है अर्थ ही यही समझ आता है कि जिस प्रकार से भगवान शंकर जी विष के प्याले का घोटा लगा लेते हैं, अर्थात घोट ले जातें है, उसी प्रकार से ८०% केंद्रीय और राज्य मंत्रियाँ भी पैसों के लिए घोटा लगा लिया करते है, ये सोच कर कि भगवान शंकर से कुछ बड़ा काम कर लेते है
आज का जब अखबार उठाते है तो हम उसे पढने पर ज्यादा समय नहीं देते क्योंकि, इतने घोटाले हो चुके है और होते जा रहे है, कि अब तो यह त्योहारों में भांग का रस-पान कर लेने जैसा लगने लगा है हम तो इसे आम खबर कि संज्ञा दे देते है......राजनीति में आने वाले पहले तो अपने राज कोष को भरनें कि नीति में लग जाते है और फिर अपने सगे सम्बन्धियों का ...
जब आम आदमी(मैंगो पीपल) इस बात को सुनता है तो वह सोच ही नहीं पता कि ये दस-बीस हज़ार की बात होती है या करोडों की, क्योंकि वह तो ५० रूपये दिहाड़ी पर काम करता है (यहाँ आम आदमी मैं अरविन्द केजरीवाल की बात नहीं कर रहा हूँ)
अरविन्द केजरीवाल का काम अब केवल जनता के सामने सभी पार्टियों के नेताओं को भ्रष्ट साबित करने का है और उनकी यह मंशा इसलिए है क्योंकि वे राजनीति में प्रवेश करना चाहते है....हालाँकि उनका यह कार्य सराहनीय योग्य है पर क्या केवल नेताओं की खिंचाई करने मात्र से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जायेगा, जब तक इसका समाधान न निकले, जब तक इसका जनता को फायदा न हो...
यह लोकतंत्र राज्य अगर लोगों के हित में ही न हो तो ऐसे काम सिर्फ करने से फायदा नहीं है, हाँ ठीक है केजरीवाल और उनकी टीम, गांधी जी के विपरीत अपने आपको क्रांतिकारी नेताओं भगत सिंह की तरह समझ रही है परन्तु वास्तव में कुछ लोग उन्हें कट्टरवाद समझनें लगे है....
मुझे ऐसा लगता है उनके राजनैतिक विकल्प के लिए कुछ बातें थोडा सकारात्मक हो सकती है परन्तु जनता के हित में होगी या नहीं यह कह पाना मुश्किल है, हमें इस पर विचार करने की जरुरत है....
इस देश में कानून बने है जो सिर्फ वही पालन होने लगे तो शायद देश ६०% सुधार की तरफ चला जायेगा और इस काम के लिए जनता ही उत्तरदायी है ....
हाँ एक बात जरुर है इस देश में कुछ कानून ऐसे बनाये गए है जिसमें बदलाव सिर्फ इसलिए होतें है ताकि वर्तमान में चल रहे पार्टी को ऐसे कानून के द्वारा खतरा न हो, जैसे सूचना का अधिकार, अगर इसके दायरे पर नियंत्रण लग जाये तो, क्या यह कभी सुचारू रूप से काम कर पायेगा?? अगर आपको यह कह दिया जाये कि आप अपने मजबूरी को देखते हुए काम न करें आप जनता कि मजबूरी को देखते हुए काम न करे, आप सरकार कि मजबूरी देखते हुए काम करे, तो क्या यह देश लोकतान्त्रिक रह पायेगा?????
चाहे वह केंद्रीय मंत्री या राज्य मंत्री, उन्हें सिर्फ मंत्री होने के नाते कुछ भी कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए, चाहे वह भले ही संविधान में निहित न हो, परन्तु अगर वह नैतिक रूप से सही न होI
कुछ भी हो मुझे खुशी इस बात से होती है कि देश में इतनी रैलियां इतने घोटाले और बहुत सारी नकारात्मक चीजों के रहते हुए भी, यह देश अपने पथ पर अग्रसर है चाहे उसकी विकास दर बहुत कम हो और इसका देश कि जनता पर एकाएक कोई बहुत असर नहीं पड़ रहा है....
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इस देश में २० % से भी अधिक लोग राजनीति में ऐसे है जो ईमानदार और नीति-विशेषज्ञ है और इन्ही कि वजह से आम आदमी को लाभ पहुँच रहा हैI
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