सारी जग के आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे..............
बच्चे तो बेहद सुन्दर और सच्चे होते है, मुझे क्या आप सभी को ही ऐसा दिखता और महसूस होता होगा ....छोटे-छोटे बच्चे जब मां की गोंद में आये तभी से वे कुछ ऐसे सांकेतिक रूप और पहचान दे देते हैं और देते रहते हैं कि तभी से ही पूरा परिवार खुश हो जाता है और जब भी हम उन्हें देखते हैं, तभी उनके यही सांकेतिक/ स्वतः प्रतीत होने वाला रूप/चेहरा हमें मुस्कुरानें पर मजबूर कर देता है और फिर हम उनके साथ रहते हुए सब कुछ भूलकर अपने बचपन के दिनों को याद कर थोड़ा सा हँस सा देते हैंI
हँसना और मुस्कुराना दोनों एक ही प्रकार के प्रतिक्रिया के दो अलग-अलग पहलू हैं, और हम यह जानते हैं कि मुस्कुराना एक ऐसी स्थिति है जिसके पीछे छिपे कारण बेहद अहम और सुखद होतें है, वहीँ हँसना किसी भी छोटे पल के सुखद वातावरण, बहुत कम समय में सम्पन्न किसी स्थिति/परिस्थिति को दर्शाता है यह परिस्थिति कुछ भी हो सकती है जैसे कोई किसी फर्श पर से फिसल गया तो ऐसी स्थिति में हमें हंसी आ जाती है परन्तु हमारी मुस्कराहट मुश्किल से हमारे चेहरे पर सही रूप से दिखने में दिन में २ या ३ बार ही आ पाती है वह भी तब जब हम तनावमुक्त होते हैंI
जब बच्चा मां के पेट में होता है तो वह दिन में कई बार "अनगिनत" बार मुस्कुराता है यह बात अल्ट्रासाउंड से स्वतः स्पष्ट हो जाती है अलग-अलग रिसर्च बताते है जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसकी मुस्कुरानें की आदत छूटने सी लगती है, क्योंकि हम धीरे-धीरे कहीं न कहीं किसी भी प्रकार से चिंतन और सामाजिक और पारिवारिक रूप से बोझ बनने लगते हैं, क्या आपने कभी सोचा है? जब बच्चे मुस्कुराते हैं या हम मुस्कुराते हैं तो हम या छोटे बच्चे बहुत अच्छे लगते है अपेक्षाकृत हँसने के I दिन में जब आप २ बार मुस्कुराते हैं तो वह भी मन से नहीं केवल दूसरों के दबाव में; और गर्भ में पल रहे बच्चे वहीं ४०० से भी ज्यादा बार मुस्कुराते हैं I
मुस्कुराना एक संक्रामक रोग है, तभी तो किसी को मुस्कुराते देख हम भी उसमें शरीक हो जाते हैं, क्योंकि इसमें बेहद अदृश्य शक्ति छिपी है,ऐसा रान गुट्मन कहते है कि यह सारे तनाव बढ़ाने वाले हॉर्मोन ऐडरेलीन और कोर्टीसोल आदि को कम कर देता हैI
तो क्यों न आज से ही इन नन्हे बच्चों की तरह कुछ अधिक बार मन से मुस्कुराइए और अपने लम्बे स्वस्थ जीवन का अंग बनिएI
अगर हम बच्चों से सीखना चाहें तो बहुत कुछ सीख सकते हैं, जबकि शायद आप सोचतें हैं कि बच्चा हम से सीखे तो बेहतर होगा. कल्पना कीजिये कि आप कहीं किसी बात को छुपाना चाहते हैं और आपके साथ रहने वाले छोटे बच्चे को यह सब कुछ पता है जो आप शायद अच्छा नहीं कर रहे हैं, यह आपको भी पता है परन्तु फिर भी आप थोड़ी से लालच के लिए ऐसा कर रहे है, बच्चा उसी बीच कह देता है आप झूट बोल रहे हैं, भलें ही हम उस बच्चे के बहुत करीबी हो....उदाहरण के लिए एक मां रिक्शे वाले से किराया पूछती है रिक्शे वाले ने कहा १० रूपये हुए, आप कहती हैं, अभी कल तो ८ रूपये में आई थी...बच्चा तपाक से बोलता है, नहीं अम्मी!! झूट बोल रही हैं आप १० ही रूपये में आयी थी, एक सच्चे दिल वाली मां अपने बच्चे से सही/ सच्ची बात बोलने की सीख लेती है, परन्तु वहीं एक मां अगर बच्चे को बदले में दो तीन झापड़ मार देती है तो वह बच्चे को ही नहीं खुद के चरित्र के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगा लेती है और यही बच्चा सदा के लिए सच्चा होने के बजाय चोर उचक्का बन बैठता है.....
जब बच्चे सच्चे और भोलेपन का संकेत देते हैं तो उनके प्रति प्रेम कि भावना जगने लगती है तो क्यों न हम उनसे ही प्रेम करना सीख जाये. जब प्रेम होता है तो सहानुभूति भी जगने लगती है, हम सड़क पर जा रहे होते हैं, तो एक कुत्ता अगर हमारे पास से गुजरता है तो हम दो कदम दूर होने लगते हैं, मतलब कुछ ही लोग उससे मुखातिब होना चाहते हैं, वहीं जब उसका बच्चा पिल्ला हमारे पास से गुजरता है तो उसे पुचकारने लगते हैं अगर वह दूर होता है तो हँसते हुए जाते है और उसे पकड़ लेते हैं, तो ये बच्चे भी हमें यहीं बता रहे है हम अपने घमंड को कम कर लें और हर किसी से प्रेम करें हर किसी के प्रति सहानुभूति जगाएंI अक्सर जब प्रेम होता है चाहें वह किसी भी रूप में हो, तभी हम उसका अर्थ समझ पातें है लेकिन प्रकृति ने जो चीज दी है हमें वह सिर्फ प्रेम करने के लिए ही नहीं बल्कि उसके प्रति अच्छे सदविचार को रखते हुए, उसे सच्ची राह पर ले जाते हुए, उसके प्रति पूरी जिम्मेदारी समझते हुए सहानुभूति रखते हुए नैतिक भाव से उसके हर विचारों से अवगत हो, अपना कदम बढ़ाना चाहिए, जब बच्चों से ये सारी चीजें हम नहीं कर पाते या करते हैं तो भी बच्चे हमेशा अपने कदम ऐसे ही बातों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ाते हैंI
जब बच्चा पेट में पल रहा होता है, तब वह खुश रहता है और वह बच्चा जब बाहर इस संसार की गोद में आता है तो वह थोड़ा रोता है और तभी हम ख़ुशी मनाने लगते है वास्तव में बच्चे के उस रोने में एक मुस्कराहट भी छिपी होती क्योंकि वह जानता है कि हमें कहीं अच्छी जगह भेजा गया है और मै सांसारिक जीवन में अपना परिचय देने आ गया हूँ; और फिर तो इतने दिनों से मेरा ही इंतजार हो रहा है कि मै आप सबके जीवन में भागीदार बनने आ जाऊंI
छोटा बच्चा छोटे बच्चे कि कहानी पढने पर ही जोर देता है क्योंकि वह जानता है कि बच्चों से अच्छा सीख कोई नहीं दे सकताI ये तो रही छोटे बच्चे कि बात जब आप बड़े हो जाते है तो आप भी तो उस स्थिति में वीर बच्चों कि कहानियों को पढ़ कर उनसे प्रेरणा लेकर अपने कैरियर की शुरुआत करते हैI
जब प्राचीन ग्रंथों गीता, रामायण आदि का अध्ययन करते हैं तो भी भगवान के बाल्यावस्था के बारे में ही पढ़ कर उनके चरित्रों पर एक नजर दौड़ाने की कोशिश करते है और यहीं से उनकी कथा का विस्तार होना शुरू होता है, क्योंकि भगवान की पूजा तभी हो सकती है जब उनके बारे में थोड़ा बहुत जाने और यही वह अवस्था होती है जब कोई अपने वर्तमान में उत्पन्न विचारों की बाल्यावस्था के विचारों से तुलनात्मक अध्ययन कर बता सकता है उसके भविष्य के जीवन के बारे मेंI
पुरानी परंपरा आज कल के बच्चों में जाती हुई दिखती है जब बच्चे अपने गुरु का सम्मान करना जानते थे वे उनको प्रणाम करने की विधि को भली भांति जानते थे, वे अपने माता पिता को सुबह उठ कर पैर छूते थे और तभी तो वे पूरे समाज में प्रशंसनीय होते है, आज तो यहाँ शहरों में खासकर इन बातों की कमी होती जा रही है की लोग केवल इंग्लिश सिखाने के चक्कर में बच्चों के अन्दर पहले से/जन्म से आये हुए संस्कारों को मिटा दे रहे हैं, एक बच्चा जब आता है एक गाँव से तो यहाँ के परिवेश के अनुसार बच्चे से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रही छात्रा सिर्फ यही कह सकती है "Hi" क्योंकि लोग इसी को सीखने पर मजबूर हैंI
मैं किसी भाषा का आलोचना नहीं कर रहा हूँ पर आप यह समझ सकते हैं,कि हिंदी में जो बोल-चाल कि भाषा जो सामान्य रूप से प्रयुक्त होती है वह अंग्रेजी के शब्दों में कदापि नहीं मिलती जैसे डैडी, इत्यादि और फिर तो गाँव वाले भी आजकल चटर-पटर कि भाषा को रट्टू तोता कि तरह रटाने में लगे हुए है जैसे बच्चे अंकल को बोलना चिप्स ले आयें, अरे बेटा! बोलो टा-टा, अच्छा बेटा जाओ वहां, पिज़्ज़ा ले आनाI
सवाल यह है बच्चे बिलकुल फ़ास्ट फ़ूड पर उतर आये हैं उनके मानसिक विकास का मार्ग बंद हो रहा है इतना ही नहीं बच्चे आज कल के डांस पर थिरकना सीख गए है रैप करने लगे हैं, और तो और ये बिलकुल स्टाइल के चक्कर में पुरानी संस्कृतियों को इतना भूल गए है कि माँ-बाप को यार बोलतें है, और माता-पिता भी अपने बच्चे को शाहरुख़ खान बनाना चाह रहे हैं, उनको आदर्श मानने की बात करते हैं और उनके लिए एक अलग से ड्यूल सिम का मोबाइल फ़ोन गेम के साथ व उसका ईअर फ़ोन भी खरीदना नहीं भूलते..........
क्यों लोग आधुनिक बनावटी संस्कारों में बच्चों को बाँधने लगे है, क्यों नहीं जानते बच्चों से तो आपको सीखना चाहिए, तभी तो बच्चे आपसे कुछ अच्छी चीज़ों/बातों को सीख सकेंगे, और ये मत भूलिए बच्चे ही इस देश के कर्णधार हैं, इन्ही के द्वारा आपकी इज्ज़त होती है, और इन्ही पर ही दुनिया टिकी हुई हैI
बच्चे ही दुनिया में आबादी बढ़ने के लिए जिम्मेदार हैं और यही आबादी घटाने के लिएI ये ही दुनिया कि हर व्यवस्था चाहें वे राजनैतिक हो, चाहें वह आर्थिक हो, चाहें वह सामाजिक और चाहें वह किसी भी सांस्कृतिक व्यवस्था का अंग हो, मुख्य रूप से इन्ही के ऊपर ही ये सारी व्यवस्थाएं टिकी हुई है, और यही हमारे जीवन के सच्चे घटक होतें हैंI
ऐसे ही तमाम ऐसी चीजें है, जिन्हें व्यक्ति को इस समाज में रहने के लिए बच्चों से ग्रहण कर लेनी चाहिए, इससे आप सदा उन्नति के शिखर को छूते नजर आयेंगे, अवनति तो आपकी कभी होगी ही नहीं; और निश्चित है आगे से आप बच्चों के साथ ही उनके संस्कारों के लिए दूसरों के सामने उनके पुल बांधते/प्रशंसा करते नजर आयेंगेI
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