Monday 25 May 2020

जब मैंने उससे पूछा कि खैरियत है


जब मैंने उससे पूछा कि खैरियत है सब? उसने कहा- हां। मैंने फिर पूछा, ऐसे कैसे बोल रही हो। कुछ और नहीं बोलोगी? नहीं, बस ठीक है। मैं चाहता था कि वो सब कुछ बक दे। मगर सम्भव न था। मैं दूर था बहुत। चाहकर भी उससे सारी चीजें पूछ तो नहीं सकता था। अचानक से फ़ोन कट गया। मैं पूछने लगा- हेलो, हेलो कुमकुम! किसने किया ऐसा? मैंने तेजी से पूछना चाहा, गुस्से में मैं उठा तो देखा मेरा शरीर पसीने से भीगा पड़ा था। क्या? यह सच नहीं था, खुद से ही सवाल पूछने लगा! एकाएक रात के 4 बजे जगने के बाद नींद नहीं आ सकती थी। लेकिन सोया भी कहाँ था, सब कुछ खुली आँखों से ही तो हो रहा था।
तस्वीर-गूगल साभार


मुझे उससे मिले 3 शरद ऋतु बीत चुके थे। उसने बताया था कि मुझे मेरी माँ की याद आती है। वह दुनिया से तभी चली गई, जब वह होश संभालने लायक हुई। और शरद ऋतु खत्म होने के बाद अचानक से पिताजी का भी साया उठ गया। अब उसके घर में वो और छोटा भाई थे। यही सब सोचते सोचते उसके अंतिम मिलन की बात सामने आ गई। जब उसने कहा था कि अभय तुम मेरे पास से चले जाओ। मैंने कुछ नहीं पूछा था क्योंकि उसने मेरे जाते हुए कुछ बोला नहीं था। मैं खुद से
ही सवाल कर रहा था, ऐसा कहने के पीछे कुमकुम के पीछे का उद्देश्य क्या था? नहीं पता, मगर मेरे कुछ कहने के बाद शुक्रिया के साथ रिप्लाई आया था एक बार। अचानक उसने मुझे सोशल मीडिया पर भी छोड़ दिया।

पिछले 3 सालों में मैंने कभी याद नहीं किया। मगर कुछ ही देर पहले सोते समय ही किसी ने मुझे कॉल पर बताया, अभय। तुम्हें पता है, वो चली गई अब? कहाँ? अचानक से इस प्रश्न का मतलब क्या था, लेकिन वो तो चली गई थी..अब कहाँ से चली गई...? उसका भाई हफ्ते भर पहले वायरल फीवर से चल बसा। और वो खुद इसी तड़प में खत्म हो गई, इतना कहकर मनोज ने फोन काट दिया।

अब जब सोकर उठा था तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि क्या 3 शरद ऋतु पार करने के बाद चौथे शरद ऋतु में मैं खुद नहीं जाता? देश मे सब कुछ बंद था शरद ऋतु आते आते तो 1 साल होगा फिर तो खुल जाता सब कुछ! जिंदगी पटरी पर आ जाती। शायद उससे कुछ तो कह पाता...नहीं मेरा सवाल ही गलत है कुमकुम ? क्यों?

मुझे पूछना चाहिए अपने आप से कि मैंने सब कुछ जानते हुए कि तुम अकेली हो और फिर तुमसे एक बार बात करने की कोशिश क्यों नहीं की। यह जानते हुए कि तुमने छोड़ तो दिया मगर मैंने तो नहीं छोड़ा। मैंने यह पूछने की क्यों नहीं हिम्मत की कि तुम्हारे घर में अब तुम 2 हो और तुम्हारी रोटियों का इंतजाम कैसे हो रहा है? मैंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि तुम इस बंदी में कैसे 4 महीने बिता सकी हो? मैंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि तुम उस शरद ऋतु में क्यों कह गए थे कि चले जाओ! और फिर यह भी नहीं जानने की
कोशिश की कि तुमने क्या कुछ इस बीच खोया...मैं पसीने में था लेकिन मेरा पसीना उस गर्म मौसम का भी था जो अब चल रहा था? मैंने अपनी आंखों में एक बूंद भी न देखा कि गिर रहा हो? मैं इसके बाद कुछ सोच नहीं सकता था, अंत में बस इतना ही सोचा था कि क्या मैं संवेदनहीन अब हुआ हूँ। क्या अब मैं एक बूंद आंसू गिराने के भी काबिल नहीं रहा? ऐसी अमानवीयता का फल मुझे क्या मिलेगा?

नोट- तथाकथित काल्पनिक कहानी लिखने का उद्देश्य सब कुछ भुलाकर एक दूसरे से हाल चाल पूछ लें।


#प्रभात

Prabhat

No comments:

Post a Comment

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!