जब मुझे
रागिनी
दिखती
है,
तो
काल्पनिक
कथा,
काल्पनिकता
के
एक
साहित्य
में
निखरती
हुई
प्रतीत
होती
है
वह
बिल्कुल
अलग
थी,
उसने
मुझे
एक
अलग
सा
अपनत्व
दिया
और
बिल्कुल
अपने
जैसा
होने
का
बोध!
आज सुबह
हो
रही
है,
रागिनी
आयी
थी
परन्तु
वह
थोड़ा
पहले
भोर
हुए
ही
नहीं;
तभी
आ
गयी
......बस
मै
१२
घंटे
भी
इंतजार न कर
सका
और
अँधेरी
शाम
होने
को
होती है मै
छुप
सा
गया
एक
कोने
में
यह
कह
के
कि
कल
ज़रूर
मिलना,,,,,,,,,,,राहें
उसके
इंतजार
में
सकरी
होती
मालूम
हो
रही
थी
परन्तु
वह
तो
अगले
सुबह
मिलने
वाली
थी
चन्द्र
देव
के
दर्शन
हो
गए
अब
तो
एक
ही
दर्शन
होना
बाकी
था
वह
प्रभात-रागिनी
का
!.........सूर्य ने अपनी
पलकें
खोली
और
फिर
क्या
था
किरणों
की
अपरम्पार
महिमा;;;;;;;अब
मुझे
रागिनी
का
इंतजार
था
परन्तु
आसमान
में
तभी
घड़े
से
पानी
गिरता
नजर
आया
पता
लगा
अब
तो
रागिनी
कही
दूर
एक
ऐसी
जगह
चली
गयी
होगी
जहाँ
मै
तो
होऊंगा
पर
वह
मुझे
कब
दिखेगी पता
नहीं
क्योंकि
तब
तक
रागिनी
मेरे
बिना
रहना
सीख
जाती
है,,,,
मै
इसी
सोंच
में
हर
दिन सूर्य
होते
ही
दिखता
हूँ
कि
शायद
वह
मेरे
रोज
आने
की
दिनचर्या
से
कभी
तो
वाकिफ
होगी
!!!!
Prabhat
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