"""""रागिनी
क्या तुम्हे पता है मैंने अपने एक महीने के दिन को वनबास के रूप में क्यों समर्पित किया था .....क्योंकि
मुझे देखना था की यहाँ लोगों की मानसिकता कैसी है ,,,,एक
ऐसे समय से गुजरना किन-किन विचारधारों में परिवर्तित होती है और इन्ही सब बातों से हमें कैसे/ किस प्रकार की सीख लेनी चाहिए.....कहते
है यहाँ लोगों के पास बल है पर कैसे इसका प्रयोग करें
नहीं पता
यहाँ लोगों के पास अच्छे पैसे है, पर इन पैसों का सदुपयोग किस उचित कार्य में करें
नहीं पता
लोग बहुत अच्छी पोस्ट पर है लेकिन बात कैसे करें
नहीं पता
अपनी गरिमा का ध्यान नहीं अपना खुद का सम्मान नहीं दूसरों का कैसे करें
पता नहीं
फिर क्या पता है इस देश और इसके समाज के बारे में जहाँ हर तरफ से विभिन्नता है वहां सिर्फ जगह/जन्म स्थान को लेकर बंटवारा कैसा??
अगर मुझे कुछ नहीं पसंद है तो क्या करूँ??? सिर्फ पैसे, उसके लिए मिलने वाले सम्मान और सम्बन्ध को लेकर मैं अपने जिन्दगी के लिए सजाये गए सपनों को सिर्फ सपनों में ही पड़े रहने दूं......
रागिनी अब तो तुम मुझे जानती ही हो कि मेरे ऊपर माता-पिता के सादगी जीवन और उनके सभी उत्तम विचारों का इतना प्रभाव है और रहता आया है जो मुझे शायद ही कहीं किसी भगवान की चौबीस घंटे पूजा करने/ तपस्या
से मिल सके........
तो मुझे क्या करना चाहिए और मैं क्या कर सकता हूँ तो कोई और नहीं मुझे ही निर्धारित करना होगा.....
प्रभात तुम तो कभी कुछ और ही कह रहे थे आज कुछ कहते हो " रागिनी
थोड़ा सोंच के""
आखिर बात क्या है.......मिलना
तब ज़रूर बताऊंगा..!!!! और
तब तक ऐसे इतिहास का एक विचित्र अध्याय ख़त्म हो जाता है शायद ही कभी कोई इसे
पढ़े और इसका जिक्र करे !
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