रागिनी एक बार मुझसे मिलने आयी थी, इस बार तो उसने मुझे काल्पनिक जीवन की बजाय वास्तविक जीवन में होने का आभास कराया......उसने कहा तो कुछ नहीं पर मैंने जितना उसके न कहने पर समझ लिया उतना शायद ही किसी और के कहने पर समझ पाता....घबरायी हुई सी थी और अचानक गायब हो गयी जैसे चाँद बादलों में अचानक छुप सा जाता है,
मुझसे कहने आयी थी कि "" जब तुम्हारे आने से उजाला हो सकता है तो तुम्हारे जाने से अंधकार तो होगा ही.... परन्तु अगर उससे पहले मैं चली गयी तो मेरे लिए उस अंधकार का क्या मतलब ???""
सच में रागिनी के होने का आभास मुझे ऐसे समय पर ही लगा जब वह चली गयी, वह इतनी सुन्दर और कोमल थी जितनी कोई वाटिका में लगे पेड़ों के फूल भी न हो सकें, बातों में इतनी मधुरता थी जितनी कोयल कि मीठी आवाज में भी न हो सके........
रागिनी को मै बस यूँ ही अब सपनों में देखता रहता हूँ और मेरे वास्तविकता के साहित्य कि झलक आप तक पहुँचती रहती है...............
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!