Saturday 22 September 2018

यहीं नहीं ठहरना है


अभी दूर तक चलना है
यहीं नहीं ठहरना है
सफर तो अभी शुरू हुआ है
आसमां में बादलों को देखो
उन्हें गरजना हो या तड़पना हो
ठहर कर फिर बरसना है
पानी फिर से भरना है

अभी दूर तक चलना है।
रात अंधेरी हो कितनी
तारों को टिमटिमाते हुए देखो
बादलों में छुपते हुए देखो
छुप छुप कर बाहर निकलना है
जुगनुओं को झिलमिलाते हुए देखो
रुकना है मगर चमकना है
रात बीतने तक जगना है
अभी दूर तक चलना है
नदियों के हौसलों को देखो
पहाड़ों पर बर्फ पिघलते हुए देखो
समंदर में तरंगों को देखो
उनका बनना और बिगड़ना जारी है
सिलसिला अनवरत जारी है
कभी नहीं ठहरना है
हमेशा खुद में मगन रहना है
अभी दूर तक चलना है
-प्रभात
तस्वीर: गूगल साभार




2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-09-2018) को "चाहिए पूरा हिन्दुस्तान" (चर्चा अंक-3103) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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