मैं सच में कमाल का इंसान हूं। एक इंसान जिसके लिए नहाना अन्य
दूसरे चीजों से भी ज्यादा मायने रखता है। कुछ वाकया बताते हैं....
2010 के आस पास की बात है, अपने मित्रों के संग अमृतसर, वाघा बॉर्डर, जलियावालाबाग तक घूमने की योजना बनी। सामान्य यानी कि लोकल डिब्बे में बैठकर सफर करना था। 3-4 साथी थे। रात को दिल्ली से अमृतसर के लिए रवाना हुए। सुबह ट्रेन अमृतसर पहुंच गई। अब समय था, नित्य क्रियाओं से निपटने की। जिसके लिये कहा जा सकता है कि शौच ज्यादा जरूरी प्रक्रिया है। हालांकि सभी लोग शौच के बाद ब्रश और ब्रश के बाद चाय लेने लगे और उसके बाद घूमने की योजना। मैं इस चक्कर में कि नहाने तक की प्रक्रिया जब तक न खत्म हो तब तक खाने और यात्रा करने का आनंद का मजा कैसे आये। तभी एक दोस्त ने मेरी जिद पर एक जगह इशारा किया जहां खुले रेलवे स्टेशन के टीनशेड के नीचे एक जगह पानी का इंतजाम था....और मेरे लिए यहीं नहाने के लिए काफी था।.... और मैं खुले में ही स्नान कर चुका था ।
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दूसरा वाकया और मनोरंजक है। एक बार 2016 में मनाली जाने की योजना थी। दिल्ली से मनाली बर्फबारी की वजह से सुबह पहुंचने की बजाय रात 12 बजे पहुंचे। 12 बजे तक रास्ते बाहर बर्फबारी और उसी में फंसे होने के बाद सभी को गर्मी चाहिए थी। कुछ को अल्कोहॉल और कुछ को हीटर/कंबल। लेकिन, मेरे लिए नहाना जरूरी था। होटल वाले लड़के से जब कहा गया कि नहाने के पानी का इंतजाम कर दो। तो ऐसे देख रहा था जैसे कुछ गलत बोल दिया हो। किसी तरीके से गरम पानी के नाम पर 2-3 मग पानी दिया। लेकिन, नहाने के लिये बाल्टी भर पानी की जरूरत थी। और अब 2-3 मग पानी मे जमा हुआ बर्फ का पानी मिलाकर नहाया। इसके बाद रोटी का इंतजाम करना था।
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दूसरे कई मौकों पर अक्सर ऐसा हुआ, जब मजबूरन यात्रा यानी बिना योजना के कि नहाना एक बहुत बड़ा लक्ष्य था। लेकिन, ऐसे मौकों पर सुलभ शौचालय काम आए।
एक और वाकया बताता हूँ। एक बार हंसराज छात्रावास में पानी खत्म हो गया। मैं दूसरे अन्य बच्चों की तरह इंतजार न कर सकता। कॉलेज की गली छात्रावास के सामने है। जहां पार्क है। पार्क में घास सीचने के लिए मोटी पाइप लगी है। और पाइप ऑन करके खुले में स्नान करके ही चैन मिला।
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मुझे ध्यान आता है एक बार जब मैं नहीं नहा पाया था। बात बचपन के उन दिनों की बात है जब मैं अपनी दादी के साथ घर से छिपते हुए भाग गया था। 10 किलोमीटर दूर भागना इसलिये पड़ा था क्योंकि पुलिस का आंतक था। डर था इतना कि पेशाब करने की जब नौबत आई थी तो उन दिनों कमरे में रखे बोतल में करना पड़ा था। ऐसा भयावह रूप लिए वह दिन हमारे नहाने का नहीं जीने का था। इसलिए ऐसे समय एक दिन नहीं नहा पाए थे। न नहाने से ऐसा अहसास हुआ था कि शरीर निर्जीव हो चुका है। धूप में शरीर में खुजली होती और शाम तक जब तक पानी नहीं पड़ा तब तक ऐसे लगा था जैसे मैं हूँ ही नहीं।
खैर कुछ लोग तो सच में कमाल के होते हैं जैसे वे लोग जो कई कई महीने तक बिना नहाए रह सकते हैं। आपको ताज्जुब होगा एक ऐसा भी लड़का था, वह नहाया नहीं 3 महीने तक और पता लगा सारा शरीर कृमि की चपेट में है। अस्पताल में भर्ती हो गया था। अब समझने वाली बात ये है कि इंसान कमाल का कौन हुआ।
2010 के आस पास की बात है, अपने मित्रों के संग अमृतसर, वाघा बॉर्डर, जलियावालाबाग तक घूमने की योजना बनी। सामान्य यानी कि लोकल डिब्बे में बैठकर सफर करना था। 3-4 साथी थे। रात को दिल्ली से अमृतसर के लिए रवाना हुए। सुबह ट्रेन अमृतसर पहुंच गई। अब समय था, नित्य क्रियाओं से निपटने की। जिसके लिये कहा जा सकता है कि शौच ज्यादा जरूरी प्रक्रिया है। हालांकि सभी लोग शौच के बाद ब्रश और ब्रश के बाद चाय लेने लगे और उसके बाद घूमने की योजना। मैं इस चक्कर में कि नहाने तक की प्रक्रिया जब तक न खत्म हो तब तक खाने और यात्रा करने का आनंद का मजा कैसे आये। तभी एक दोस्त ने मेरी जिद पर एक जगह इशारा किया जहां खुले रेलवे स्टेशन के टीनशेड के नीचे एक जगह पानी का इंतजाम था....और मेरे लिए यहीं नहाने के लिए काफी था।.... और मैं खुले में ही स्नान कर चुका था ।
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दूसरा वाकया और मनोरंजक है। एक बार 2016 में मनाली जाने की योजना थी। दिल्ली से मनाली बर्फबारी की वजह से सुबह पहुंचने की बजाय रात 12 बजे पहुंचे। 12 बजे तक रास्ते बाहर बर्फबारी और उसी में फंसे होने के बाद सभी को गर्मी चाहिए थी। कुछ को अल्कोहॉल और कुछ को हीटर/कंबल। लेकिन, मेरे लिए नहाना जरूरी था। होटल वाले लड़के से जब कहा गया कि नहाने के पानी का इंतजाम कर दो। तो ऐसे देख रहा था जैसे कुछ गलत बोल दिया हो। किसी तरीके से गरम पानी के नाम पर 2-3 मग पानी दिया। लेकिन, नहाने के लिये बाल्टी भर पानी की जरूरत थी। और अब 2-3 मग पानी मे जमा हुआ बर्फ का पानी मिलाकर नहाया। इसके बाद रोटी का इंतजाम करना था।
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दूसरे कई मौकों पर अक्सर ऐसा हुआ, जब मजबूरन यात्रा यानी बिना योजना के कि नहाना एक बहुत बड़ा लक्ष्य था। लेकिन, ऐसे मौकों पर सुलभ शौचालय काम आए।
एक और वाकया बताता हूँ। एक बार हंसराज छात्रावास में पानी खत्म हो गया। मैं दूसरे अन्य बच्चों की तरह इंतजार न कर सकता। कॉलेज की गली छात्रावास के सामने है। जहां पार्क है। पार्क में घास सीचने के लिए मोटी पाइप लगी है। और पाइप ऑन करके खुले में स्नान करके ही चैन मिला।
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मुझे ध्यान आता है एक बार जब मैं नहीं नहा पाया था। बात बचपन के उन दिनों की बात है जब मैं अपनी दादी के साथ घर से छिपते हुए भाग गया था। 10 किलोमीटर दूर भागना इसलिये पड़ा था क्योंकि पुलिस का आंतक था। डर था इतना कि पेशाब करने की जब नौबत आई थी तो उन दिनों कमरे में रखे बोतल में करना पड़ा था। ऐसा भयावह रूप लिए वह दिन हमारे नहाने का नहीं जीने का था। इसलिए ऐसे समय एक दिन नहीं नहा पाए थे। न नहाने से ऐसा अहसास हुआ था कि शरीर निर्जीव हो चुका है। धूप में शरीर में खुजली होती और शाम तक जब तक पानी नहीं पड़ा तब तक ऐसे लगा था जैसे मैं हूँ ही नहीं।
खैर कुछ लोग तो सच में कमाल के होते हैं जैसे वे लोग जो कई कई महीने तक बिना नहाए रह सकते हैं। आपको ताज्जुब होगा एक ऐसा भी लड़का था, वह नहाया नहीं 3 महीने तक और पता लगा सारा शरीर कृमि की चपेट में है। अस्पताल में भर्ती हो गया था। अब समझने वाली बात ये है कि इंसान कमाल का कौन हुआ।
(आज मुझे ये सब तब ध्यान आया। जब मैंने नहाने के
लिये केवल लखनऊ के 1 होटल में 700 रुपये
खर्च कर दिया। वह भी 1 घंटे के लिए)
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