Monday, 21 May 2018

आँधी-पानी वाला बचपन

"आँधी-पानी वाला बचपन"

दिन भर चिबभी (गांव में पैर से ठिकड़ा मार कर कूद-कूद कर खेले जाने वाला खेल) खेलते हुए रामू और उसकी बहन राम्या कभी न थकते। मम्मी चिल्लाती रहती कि "बेटा लू (गरम वायु) लग जायेगी। पूरी दोपहरिया चिल्ल पों करते रहते हो। थोड़ी देर आराम कर लो" लेकिन इन बातों को वे दोनों अक्सर अनदेखी करते। माँ कह कह के थक जाती और न जाने क्यों सोना चाहती तो सो न पाती। और हमेशा यही कहती, "आने दो पिताजी को तुम दोनों के बारे में बताऊँगी कि पढ़ाई नहीं करते और केवल पूरी दोपहरिया खेलते ही रहते हैं"। इतने में थोड़ी देर में रामू आया चिल्लाता हुआ और माँ गुस्से में तमतमाई हुई उठीं और इस बार इतना झल्लाते हुए रोने की सूरत बना कर कहने लगीं कि क्या हुआ, सोने क्यों नहीं देते जब देखो तब खटर पटर ही किया करते हो। रामू कुछ नहीं बोला उसे लगा कहीं मम्मी मार न दे। और इससे ज्यादा मम्मी की रोने जैसी सूरत देख कर वह चुप हो गया कि शायद मम्मी को कितना दुख पहुंचा। लेकिन मम्मी अब जग चुकी थीं तो जानना भी चाहती थीं कि आखिर रामू हर बार चिल्ल्लाता है तो इस बार भले ही कोई कारण न हो। लेकिन ऐसा क्या था जो चिल्ला रहा था या कहना चाह रहा था। रामू शरारती था और राम्या भी यह सब देख रही थी। वह कह रही थी कि मम्मी वो ऐसे ही चिल्लाया होगा। कोई काम तो था नहीं। शायद बहन को भाई के लिए शिकायत करने का मौका था। और भाई को अब साबित करने का। रामू ने कहा मम्मी बाहर देखो। बहुत जोर की धूल और हवा चल रही है। आंधी तूफान के साथ। और पूछना चाहता था कि खेत मे चले जाएं। आम गिर रहा होगा। मम्मी जोर से भागती हुई कहने लगीं "पागल रामू तुम्हें पहले नहीं बताना चाहिए था। अब छत पर आम का अचार जो सूख रहा था, भीग गया होगा। और आम तो गांव के बहुत सारे लड़के बीन ले गए होंगे। इतनी तेज हवा दादी भी तो तुम्हारी गई होंगी। मैं भी चलूंगी। तुम अकेले कहीं आंधियो में पेड़ के नीचे दब गए तो?"
रामू की तिलमिलाहट, छटपटाहट तो थी लेकिन हिम्मत भी नहीं थी क्योंकि शायद उसे नहीं पता था कि आंधियों से पेड़ गिरें अगर तो कैसे बचा जाए। या लाइटिंग हो, बिजली गिरे तो क्या करें....इसलिए माँ का इंतजार कर रहा था। राम्या भी कहने लगी मैं भी चलूंगी। दोनों माँ के साथ चल पड़े। बाग 1 किलोमीटर दूर था। आम के करीब 10 पेड़ टूट गए थे। और ज्यादातर आम तो गिर चुके थे और कुछ गांव के लोग लेकर चले गए थे। पानी से दादी माँ भीगती हुए ज्यादातर आम एक जगह इकठ्ठा कर चुकी थी। रामू को पास आते देख वह 2 आम पके हुए देते हुए बोलीं कि रामू भईया ये आज जंगल के राजा शेर की शादी हुई और आज ही यह सबसे पहली बार पका तुम चखो। राम्या कहने लगी दादी मुझे भी। हां तेरे लिए भी है देती हूँ...और एक आम दादी ने दे दिया। ज्यादातर कच्चे आमों को उठाने के लिए शायद बोरियों की आवश्यकता थी। खांची चाहिए थी। पिताजी आये तब जाकर अगले 2-3 घंटे के अथक परिश्रम के बाद आम को किसी कोने लगाया जा सका। मम्मी अब दिन रात आम का अचार बनाने, छुपा छुपा कर भूसे में आम पकाने के लिए रखती, गुड़ डाल कर गुरम्मा बनातीं और फिर दोपहरिया में लू से बचने के लिए आम का शरबत बनातीं। कुछ गांव में बंटवा देतीं।

और अब रामू बड़ा हो गया है। रामू बनारस चला गया पढ़ने और राम्या दिल्ली। कभी कभार ही जाना होता है घर। आम खाने वाला तो कोई होता ही नहीं। मम्मी को जब रामू चिल्लाता था तब भी नींद नहीं आती थी और आज जब रामू घर नहीं है तब न होने की वजह से नींद नहीं आती। दिन में तब रामू और राम्या का शोर सुनकर वह जग जाया करती थीं। आज अंतर्मन का शोर उन्हें कई बार जगाता रहता है। तब आंधी आती थी तो घर से साथ निकलते थे। आज बाग वीरान पड़ा है। निकलने वाला ही नहीं कोई। राम्या पहले रामू को चिढाती थी। आज रामू को चिढाने वाला कोई नहीं। पिताजी की डांट और शाम का इंतजार, भय से दूर रहकर रामू और राम्या केवल दिन रात सपने देखते हैं। किसी अपने की। और मम्मी और पिताजी उनके घर आने की। फासले इतने दूर हो गए कि मां और पिता के पास खेलने वाले दो बच्चे अब दूर कहीं रहने लगे। और अब उनके पास खेलने वाले बच्चे नहीं और बच्चों के खेलने का समय नहीं। घर कभी कभार जाना और जाते हुए विदा करते मां और पिताजी की आंखों को न मिला पाना और फिर उधर घर में दोनों लोगों का आपस में आंसुओं को पोछना और इधर बेटे और बेटी का रह रह कर दृश्य ख्याल में आते ही आंखों को पोछना शायद अपने आप में जिंदगी है। ऑटों में बैठकर विदा लेने के बाद रामू के चेहरे पर अनायास ही आंखों से होती हुई आंसुओं की कुछ बूंदे नीचे गिरते देख बगल में बैठे एक मुसाफिर ने पूछ लिया "क्या हुआ भईया तबियत ख़राब है?" और रामू ने कहा नहीं चाचाजी बोतल का पानी गिर गया....

#प्रभात "कृष्ण"

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-05-2017) को "आम और लीची का उदगम" (चर्चा अंक-2978) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - शरद जोशी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. यह हम सबके बचपन की कहानी हो जैसे। बढ़िया लिखा।

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