Tuesday, 26 June 2018

कहीं ऐसा न हो



एक दिन वह भी था
जब उसने सपना देखना शुरू किया था



एक दिन वह भी है
जब उसके अरमानों का कत्ल हुआ
सपने देखने से पहले उसके पास कुछ नहीं था
केवल उम्मीद, आशा और उससे जलती मशाल के सिवा
केवल हंसी, खुशी और उससे पनपता प्यार के सिवा
लेकिन जब अरमानों का कत्ल हुआ
यानी दीपक बुझ गया, वह शून्य हो गई
तो उसके पास सिवा निष्प्राण जिस्म के
एक शब्द भी नहीं हैं कहने को अब
शायद एक लंबा सफर तय हुआ था
जमीन से आसमान तक का
लेकिन ठहरने की बजाय
वो वापिस जमीन पर आ गए
अब शायद वह एक बार फिर तय करेगी सफर
किसी और के साथ
लेकिन इस बार कुछ अलग होगा
किसी और के सपने टूटेंगे
और उसकी वजह से अब होगा
किसी और के अरमानों का कत्ल

और चलता जाएगा सिलसिला
इसी में कहीं सचमुच ऐसा न हो
जिसका डर भी है कि 
कोई हताश होकर
कर न ले रूह का भी कत्ल।



2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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