आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!
गरीबी:- माँ, मैं और मेरी कहानी
रोटी नहीं है खिलाने को खाने की मांग कब करूँ
अशिक्षा बेरोजगारी के आशियानें में नए भारत
कि बात कब करूं
छुपती हुई देह और दुशाला में काप रही हूँ
मैं
कोई चाहनें वाले कि खातिर जग रही हूँ मैं
संस्कार में है मर जाना पर मांग नही
ऐसे ढलते सूरज की छाओं में छुप रही हूँ मैं
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब
करूँ?
उसकी हकीकत को समझनें लगा हूँ मैं
दर्द और चीखने कि अस्रु में झूलने लगा हूँ
मैं
बच्चों के बदन की पीड़ा को समझना आसान नहीं
पर उसकी माँ की आवाज पर चीखना लगा हूँ मैं
असमानता की खायी में छुपने लगा हूँ मैं
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब
करूँ?
कहानियों सी लगती है पेपरों में उन्हें पढ़ना
कविताओं में देखकर भूल जाता हूँ मैं
असली गरीबी तो सड़कों पर ही दिख जाती है
ताजमहल की सफेद दीवारों में नहीं
सितारों की दुनिया में फिल्मों में खोने लगा हूँ मैं
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब
करूँ?
बीच सड़कों पर खेलते देखता हूँ बच्चों को मैं
कूड़े के ढेर में तिनका ढूंढ कर चुगते वे
दो रोटी के टुकड़े में हँसता खेलता देख उन्हें
मैं सहम सा जाता हूँ हर बार भूल जाता हूँ मैं
सियासत की जंजीरों से निकल जानें की बात कब करूँ?
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब
करूँ??
-प्रभात
विनम्र आभार