Thursday 18 July 2013

अब तक बातें मुहब्बत का करता आया हूँ

अब तक बातें मुहब्बत का करता आया हूँ 
Prabhat (प्रभात)
इस रीत का उनसे बखान करता आया हूँ 
मिजाज़ लहरों से उनका  बदलता आया हूँ 
हर लम्हों को उनसे जोड़ता आया हूँ 

खुली जुल्फों में जब से उनको देखा 
मैं तब से बंसी प्रेम का बजाता आया हूँ 
जवन हवा में खुद को संभाला जब 
तभी से उनको देखता आया हूँ 

कितने कांटें चुभे इस प्यार में मगर 
नम्य पलकों पर सपने सजाता आया हूँ 
जिन्दगी खुद से बात कर पाती है इतनी 
हर लम्हों में उनसे मिलता आया हूँ  

उनके निहारने की कल्पित माध्यमों की  
मुस्कराहट आईने पर बिखेरता आया हूँ 
भटकते दृश्य में जुटे रहे फिर भी 
शुरू से गजल गुनगुनाता आया हूँ......

-प्रभात 

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