Sunday 5 January 2020

बहुत एकांत है


कृपया इसे संभालकर पढ़ें और पढ़ें भी तो बस मनोरंजन करें क्योंकि कुछ कविताएं और गाने किसी किसी के लिए केवल और केवल रुलाने का काम करते हैं सिवाय किसी फायदे के। ऐसी ही ये पंक्तियां हैं एहसासों में डूबकर न पढ़ें। कमजोर दिल वाले तो ऐसी चीजों से दूरी बनाकर रखें। मैंने लिखी हैं तो बस संजोने के लिए क्योंकि इसमें मेरा मनोरंजन भी है और इसी में मेरी मेहनत भी।
......
बहुत एकांत है
मानो हम बिल्कुल एक दूसरे के करीब हैं

और दिल की धड़कनों को सुन रहे हैं
लेकिन शायद यह एक कल्पना है
ऐसा था कभी
आज हमारे बीच बहुत बड़ी दूरी है
इतनी कि उसमें दिल की धड़कनें क्या
तुम्हारी जोर की आवाजें भी खो जाएंगी शायद
बहुत दूर तक उसमें रेलगाड़ियों की हॉर्न
बच्चों की आवाजें
रात को गली के कुत्तों की आवाजें
और न जाने क्या क्या सुनाई देता है?
लेकिन अफसोस मैं तुम्हें सुनना चाहता हूँ
बस एक बार तुम्हें शायद तुम मेरा नाम पुकारो
इन दूरियों में कितनी बार सोचा और माना भी
तुम हो पहले जैसे उतने ही करीब
लेकिन बस है तो काल्पनिक ही
सच तो इनसे बहुत अलग है
सच है कि मैं दूर हूँ
सच है कि मैं पास हूँ
अब क्या हूँ ये तुम बताओगे क्या कभी
लेकिन मैं कैसे जानूँगा?

तड़पती आत्मा और तड़पते चेहरे से ज्यादा
वेग से तड़प रही हैं सवालों पर सुनती संवेदनाओं की खातिर
आधे पूरे होश में उधेड़ते बुनते न जाने कितनी तस्वीरें
और अनसुलझे प्रतिउत्तर
लेकिन सब धुंधला है...
यहां तक कि रुक रही हैं आवाजें भी उस धुंधले पन में
रुक रहे हैं पास आने से वो दृश्य भी
और परिवेश के सारे घटक की सीमाएं हैं जिसमें सब कुछ अच्छा था शायद!

-प्रभात
 

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