Monday 3 July 2017

कविता लिखना है

इस अंधकार को उजाला देकर
कविता लिखना है
जीवन भर रोने वाले को
हंसकर जीना है
है मात्र नही चुनौती जो
स्वीकार करूँ और बढ़ जाऊं
पता नही शायद कितने
भावों का प्याला पीना है
है रुदन वही जहाँ प्रेम दिखे
है काँटे वही जहां फूल दिखे
है प्रेम वही जहां त्याग दिखे
है सत्य वही जहां विश्वास दिखे
मन को सींचा है कल्पना से
शायद मरकर जिंदा रहना है
इस अंधकार को उजाला देकर
कविता लिखना है
कितनी खुशियां है बातों में
पूछो वाणी से धोखा न देगा
कुछ व्यथा रही होगी जो
कविता बनकर निकली होगी
पर लिखना भी है जो भी
उसे प्रेयशी को अच्छा लगना है
इस अंधकार को उजाला देकर
कविता लिखना है
साँसे रूक जाती है बोलूं तो
आंखें कुछ कह न पाती है
ढिबरी अंदर बुझ सी जाती है
लेकर मुरझाए बीजों को
फिर से अंकुरित करना है
शायद न कहकर भी सब कह देना है
इस अंधकार को उजाला देकर
कविता लिखना है।

प्रभात

2 comments:

  1. बहुत नाजुन सी रचना ... छूती है दिल को

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  2. धन्यवाद आपके ख्याल के लिए

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