Wednesday 8 March 2017

रेल

रेल में आज बैठे ये मालूम पड़ रहा है कि रेल नहीं बदला। हम बदल गए जरूर है, चेहरे पर जो भाव पिछले कुछ महीनों पहले नजर आ रहे थे वो आज नहीं है। उस भाव के साथ जो छिपी रौनक थी वह भी बदल गयी है। जैसे मेरे सिर में बाल थे वैसे नहीं रहे। हेयर स्टाइल बदल गयी है। जैसी दाढ़ी थी वैसी नहीं है। हम बदल गए है...

यहाँ कुछ भी तो नहीं बदलता...अगर बदलता है तो वह दूसरी अवस्था में वापिस लाया जा सकता है। मगर आपके चेहरे दिन ब दिन बदलते जाते है। आपकी फोटो बदलती जाती है। आपकी स्थितियां बदलती जाती है। कई बार पुराने दिनों को लौटाने के लिए अक्सर हम उन जगहों पर जाने की कोशिश करते है और डूब जाते है कल्पना में आप उस दृश्य के साथ बैठे होते है। चेहरे के भाव बदल जाते है...मुस्कुराहटें तो कभी गुस्सा उसी तरह से लबों पर छाये रहते है। मगर कुछ देर बाद फिर कल्पना से जगने पर खुद को उस जगह पर बैठे अकेला पाते है।

जिंदगी रेल की तरह ही है वह सफर तो तय करती ही है बस अंतर इतना है, रेल खुद बदलती नहीं। पर रेल में बैठे लोग बदलते है।
-प्रभात

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