Saturday, 3 November 2012

बापू आज आप १.२२ बिलियन लोगों के बीच ख़रीदे व बेचे जा रहे हैं

बापू आज आप १.२२ बिलियन लोगों के बीच ख़रीदे  बेचे जा रहे हैं-
बापू आज आपकी चर्चा १.२२ बिलियन लोगों के बीच है और आप जब थे तो यह ३५० मिलियन (३५ करोड़) लोगों में ही थी.

सुबह होते ही रागिनी ने हल्के स्वर में गाना गुनगुनाना चालू कर दिया.. ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान। उसके कदम तो बापू की राह पर चल रहे थे, मैं सो रहा था सूरज निकल  चुका था, बजने वाले थे ...अलार्म का समय बजे का था, ख्याल आया भारतीय रेलवे तो समय से २४ घंटे लेट हो जाती है हम तो घंटे ही लेट है तो क्या हुआ, जब उसको मैंने बापू के भजन को बजे गाते सुना, तब तो मेरी आँखे फिर से बंद होने लगी, लगा तो अभी तो सुबह है क्या जरुरत उठने का.......बार बार रागिनी के गाने ने मुझे सुलाए रखा और इतना ही नहीं मेरे दोस्तों को भी,, क्योंकि दोस्त जानते थे अभी तो मेरा दोस्त उठा ही नहीं होगा. उसने कह दिया इस बार तुम्हे मस्जिद चलना है सुबह, मैंने कहा अरे पगली मस्जिद में पूजा थोड़ी होती जो जाना है और वहां सुबह क्यों शाम को भी जाया जा सकता है...और कोई अगर देख लिया तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा. उसके बार-बार जिद करने पर गया तो, पर सुबह जाकर दोपहर बजे पहुंचा...देख रहा हूँ मस्जिद की मीनार तो बड़ी ऊंची है पहरेदार भी है सामने,,उसने कहा ये जामा मस्जिद है और ये अल्लाह की सेवा में लगे रहते है....बड़ी गर्मी थी सूरज बिलकुल ऊपर चुका था...उसने कहा थोड़ी गर्मी है फिर भी चप्पल हाथ में ले लो, फिर देखा पैर में तो बिलकुल कांटे जैसे लग रहे थे...धुप से तो चबूतरा तो पसीना बहा रहा था...जल्दी जल्दी चल कर गया और वापस कर तेजी से चप्पल पहरेदारों के सामने गिरा कर पैर में डाला ही था की पीछे से उन दो भक्तों की आवाज आयी कुछ जोर से ...हट भाग मार दूंगा, अरे पीछे देखा भी तो थोडा दूर जाकर वे तो ऐसे सोटा ले रखे थे अगर पड़ जाती तो मैं वही बलि का बकरा बन गया होता, रागिनी से अब मैं क्या कहता, लेकिन उसने यह बताया की मस्जिदों में बिलकुल मुसलमान भाइयों की तरह ही रहना चाहिए...मैंने सोचा तो फिर इसके लिए क्या मुसलमान बनना होगा? अगले दिन जब उसने कहा कि कभी फिर चलेंगे तो मैंने कहा मंदिर चलेंगे, मस्जिद नहीं....बहुत उसको मनाया फिर हम दोनों मंदिर चल पड़े....मंदिर की दीवारों तक पहुंचा ही नहीं था पुष्प के सुगंध रहे थे ऐसे मानों सारे भगवान यहीं गए हो,,पुजारी तो कटोरा लेकर बैठे थे मैंने पुछा रागिनी यह कटोरा क्यों, उसने फिर उसी लफ्जो में उत्तर दिया अरे पगले! आखिर भगवान को प्रसाद चढ़ाना है, काटते हुए बात को ...क्योंकि अगर दान भी करेंगे इन पंडित जी को तो सीधे यह भगवान को प्रसन्न कर देगी..अरे मन ही मन सोचा भगवान भी कैसे लालची है?? अरे इतना ही नहीं जहाँ भगवान थे वहां भी भक्तों को जबरदस्ती बुलाया जा रहा था उन पुजारियों के द्वारा....रागिनी ५१-५१ रूपये दो जगह रख रखी थी, पहले ५१ रूपये उसने पुजारी को दिया और कहा अब तुम इन्हें श्रद्धा  पूर्वक ५१ रूपये चढ़ा दो इससे भगवान तुम्हारी मुरादे पूरी कर देंगे.....नोट देखा तो ५० रूपये में आप दिखे, बापू आप! रागिनी ने फिर आपकी राह पर चलने को मजबूर कर दिया, अरे बापू आप तो भगवान के द्वारा भी ख़रीदे जा रहे हो...बापू आप को तो नोटों के द्वारा .२२ बिलियन लोग खरीद रहे है यहाँ तक की भगवान से, वही नोट आपके द्वारा बनाये गए प्रधानमत्री के परिवार वालों को  भी मिल रहा है, जो सदैव प्रजा के रक्षक और भक्षक दोनों रूपों में अपने कर्त्तव्य निभा रहे है. बापू आप तो कह रहे थे यहाँ एक ही भगवान के कई नाम है, सच कहा बापू आपने, "यहाँ तो भगवान तो धर्मों में नहीं आप जिसमें दिखते है वही भगवान वहीँ है लक्ष्मी की पूजा बापू आपसे ही शुरू होती है.
आपने कभी सोचा था की हमारा देश हमारे आदर्शों पर चलेगा, और वह सच है कि आप जब तक थे तब तक यह देश आपको आदर्श माना और आज तो आपके आदर्श के लिए आपको बेचने ख़रीदे जाने वाले लोग .२२ बिलियन है, यहाँ तक कि आपको, हर किसी सामान के साथ रेलगाड़ी या बस में पोस्ट ऑफिस से बोरो में ठूंसकर भेजा जाता है.

बापू की जीवनी पढते हुए रागिनी यह बताने लगी अरे तुम्हे क्या पता बापू कितने खुश थे जब देश आजाद हुआ, मैंने यूँ ही सोचा सच में गाँधी कितने खुश थे परन्तु उनको और ख़ुशी होती अगर बापू को गोडसे ने मारा होता.......रागिनी सो गयी और वह किताब खुली रह गयी, सोचते ही सोचते दिमाग में कुछ बातें आयी ही थी तभी सामने वाले कमरे से जोर-जोर कि आवाज आयी....मरो.अमरो मारो ...अरे डर सा गया, रागिनी -रागिनी -रागिनी जागो देखो कोई सामने वाले कमरे से आवाज लगा रहा है ...थोडा नजदीक जाकर पाया कि अब लोग गा रहे थे....हैप्पी बर्थ डे टू यू माय डिअर .......हंसी आयी और रागिनी ने कहा अब सुबह नहीं उठ पाऊँगी, ये लोग रात भर जश्न मनाएंगे...फिर मैंने सोचा यहाँ तो बर्थडे के लिए जश्न का माहौल -३घरो तक है तो हम किसी से अगर जीत जाते है तो और जश्न मनाते है और उसमे हम ही शरीक होते है परन्तु बापू ने तो क्या जश्न मनाया था, बस थोड़ी ख़ुशी हुई थी परन्तु जब जश्न का माहौल भारत-पाकिस्तान की जंग में बदला तो गाँधी जी इतनी बड़ी आजादी के जश्न को कुर्बान कर खुद भूख हड़ताल पर गए, और आखिर गोडसे ने मार दिया तो गाँधी की पीड़ा अपने-आप ख़तम हो गयी, नहीं तो गाँधी जी अपने लोगों के व्यवहार और जश्न से खुद ही मर जाते...क्योंकि अंग्रजों को भगाना शायद आसान था परन्तु अपने लोगों को झगड़ते देख और भविष्य की चिंता उससे कहीं अधिक भयावह और कठिन थी.

रागिनी कभी मुझे सपनों में दिखती थी तो बापू की काल्पनिक परछाईयाँ नजर जाती थी. सपने में बोल देता था तो वह कहती तुम्हे बीमारी है इलाज करा लो...और तुम तो बैल -गाय..क्या-क्या बोलते रहते हो, मैंने बात को टालते हुए, परन्तु वह रोमांस से थोडा कहीं अधिक प्रभाव डालने लगी...फिर मैंने बता ही दिया कि तुम्हे और बापू को देख रहा था सपने में! सच!!! तो फिर बताओ कि यह बैल और गाय में मैं गाय हूँ क्या?? मैंने कहा सुनो गाँधी जी से पुछा गया कि भविष्य कि गाडी कैसी होगी. बापू ने पूरी आधुनिक सभ्यता पर सवाल उठाते हुए कहा था-
आदमी बचा रहे तो बैलगाड़ी होगी..

हँसते हुए..क्या तुम भी , रह गए पुराने ज़माने के!
मतलब अगर आज हवाई जहाज है तो बैलगाड़ी कौन चलाएगा,

नहीं रागिनी....अरे आदमी बचेगा ही नहीं ऐसी स्थिति में अगर, ऐसे ही जनसँख्या बढती गयीं, वह तो तब रह पायेगा जब अपनी पुरानी स्थिति में पहुँच जाये अर्थात बैलगाड़ी के ज़माने में पहुँच जाये.

रागिनी से मैंने कह दिया एक ऐसी कहानी सुनाओ, जिसमे केवल मै और तुम ही नहीं बल्कि, .२२ बिलियन लोग भी मौजूद हो...

उसने बड़े प्रेम- भाव से अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए अपनी कहानी कि शुरुआत की-
पूरा परिवार ख़ुशी के जश्न माना रहा था, जब मै गर्भ में पल रही थी. और यहाँ तक की आस पास के पडोसिओं में भी ख़ुशी का नजारा झलक रहा था मानों दीवाली के दिए आज ही सज रहे थे. अगले दिन जब मेरे पडोसी वालों ने कहा कि आखिर बच्चे कि जांच करवा लो ताकि ऐसे ही महीनो हम जश्न के माहौल में रहे...मात्र महीनें ही मै खुश थी, और यह ख़ुशी मेरे परिवार वालों को देखा गया, डॉक्टर गया और मेरे माँ के पेट में यू -वी लाइट से फोटो लेने लगा और यह प्रभाव मेरे कोमल त्वचा पर मुझे एक छोटी छाप दे गया. जब परिवार वालों को पता चला की मैं लड़की हूँ, तो उसी दिन से ढोलक बजना बंद हो गया और पड़ोसियों में सन्नाटा फैल गया..किसी तरीके से मै जुड़वाँ पैदा  हुई और तब जाकर मै भी अपने भाई के साथ इस धरती के गर्भ में सकी..मैंने देखा आज तो और ही माहौल है...यहाँ तो वह यू -वी लाइट का प्रभाव प्रतिदिन मुझे देखने को मिलता रहा, मेरा भाई खुश तो था क्योंकि उसके लिए नए नए खिलौने दिए जाते और मुझे तो केवल पानी मिल जाता तो भी उसमे खुश रहती, खेलना तो दूर एक कपडे की गुडिया भी नहीं मिल पाती थी. जब मेरे पढने का समय आया तो मुझसे कहा गया कि तुम खाना बनाओ और पढने कि जरुरत नहीं, पोछा लगाओ तेरे लिए यही काफी है और वहीँ मेरे भाई को पढने के लिए बहुत अच्छी जगह भेजा जाता था. जब मै देखती कि मेरा भाई पढने जा रहा है तो मै भी पढना चाहती लेकिन चाह कर भी क्या करती..इस प्रकार जब मै १४ वर्ष कि आयु कि हुई तो कहा गया कि तुम्हारी सगाई हो गयी है पहले ही और तुम्हे आज से वहीँ रहना और  सब को खुश रखना है .....मै खुश रहती या नहीं, मुझे सब को खुश रखना है यह असंभव था परन्तु शादी कि बात से भी अवगत थी, मै यह भी नहीं जानती थी कि शादी होती क्यों है......आज जरूर जानती हूँ कि किसी राजनेता का बयां आता है "लड़कियों कि शादी कि आयु १६ वर्ष से कम कर देना चाहिए" अरे राजनेता सही तो कह ही रहे है जब गुरु कह सकते थे कि १२ वर्ष में ही हो जानी चाहिए तो इन्होने तो आयु थोडा और बढ़ा ही दिया है???

खैर मै तो पढ़ी लिखी थी तो दूल्हा कहाँ से पढ़ा लिखा मिलता, मैंने तो सुना कि किसी पागल जैसे से मेरी शादी तय हुई है, क्योंकि दहेज़ तो दे नहीं सकते थे मेरे घरवाले और मुझे पसंद ही कोई क्यों करता ?मै तो भाई से सुन्दर भी थी...जब मुझे घर से जाना पड़ा, तो मेरी वाल्यावस्था, जो मेरे खेलने खाने की थी वह तो मेरे भाग्य से निकल चुकी थी, मुझे मेरे पाती रोज गाली देते और तरह-तरह के कष्ट देते रहते, मै पूरे घर को सँभालने लगी, जबकि मुझे संभालना चाहिए था, कुछ दिनों पश्चात् मै लड़कियों क़ी माँ बन गयी और लड़के की....मेरे सास ने लड़की पैदा करने के लिए बहुत सारी यातनाएं दी और जिसकी वजह से मैं बीमार रहने लगी थी..
पति कुछ खरीद के भी नहीं लाता था, क्योंकि वह पैसे कमाता ही नहीं था, वह तो पैसे लुटाता था, जो मैं मजदूरी काम कर के ले पाती थी...थोड़े बहुत पैसे मिलते थे उसमे मैं, कैसे अपने बच्चों का गुजारा चला सकती थी मै जहाँ रहती थी वहां तो कई लोगों के हालत इतने ख़राब थे की वह दो रोटी कभी सूखा खा कर रहते थे और कुछ तो घंटो ऐसे ही रह जाते थे, पानी का इतना संकट था की वह मिल नहीं पता था, और मिलता भी तो वही नाले के जैसा पानी जिससे, कैंसर भी हो जाये...

अब मैंने कहा रागिनी अगर अपने से जोड़कर ऐसे कहोगी तो मुझे बहुत कष्ट होगा, भले ही आज हर जगह ऐसा हो रहा है, हमारे बहनों के साथ हमारे समाज के साथ परन्तु अब आगे अपना नाम मत जोड़ो.....
सुनो!!!
आज यह जल जनित बीमारी तो २५ करोड़ लोगों के बीच है, कई ऐसे ही भूखे मर जाते है, हमारी गलियों में कुछ अमीर भी है, इतने अमीर की जब हम देखते है तो - घंटे बस देखते ही रहते है वहीँ  छोटी बच्ची एक घर को देख रही थी उसकी मां ने उसे थप्पड़ लगा दी, और कही आज से मत देखना, नहीं तो तुम्हे देखने से एक ऐसा रोग हो जायेगा की उसका इलाज मैं नहीं करा सकती, मेरे पास पैसे नहीं है...और सच में कई बार वह बेहोश हो चुकी थी ऐसे घर देखकर. वह घर २८ मंजिला का है जहाँ २० लाख लीटर तो पानी का खर्च है, और उसी पानी के लिए सारे स्लम वाले से बजे तक लाइन में लगे रहते है. इतनी गरीबी और अमीरी की असमानता क्या गाँधी जी सोच सकते थे???

आज कहने के लिए प्रजातंत्र है, अगर यह वास्तव में होता तो संसद में चरित्रहीन सांसद होते. हर जगह कन्याकुमारी से लेकर जम्मू कश्मीर तक ऐसे ही लोग है जहाँ परिवार तंत्र चल रहा है चाहे वह नेहरु हो या लालू  या उमर अब्दुल्ला! बापू ने कहा था की
"मैं एक ऐसे राष्ट्रपति की कल्पना करता हूँ जो देश की बागडौर भी संभाले हो और मोची भी हो"
बापू कभी नहीं चाहते थे की हमारा संसद भवन या न्यायालय या और सारे बहुत से क़ानूनी भवन राजमहल जैसे हो......उन्होंने तो सारे ब्रिटिश हुकूमत के समय बनाये गए महलों को स्कूल में तब्दील किये जाने की बात की थी.


आज गरीबी यश चोपड़ा के "फ़िल्म" में कहाँ दिखती है वहां तो प्रकृति के सुन्दर-सुन्दर जगहों और कैटरीना को दिखाकर पैसे वसूल कर लिए जाते है..और आप बापू फिर बिक जाते है..

मनुष्य तो केवल अपनी ही बात करता है, इतना संवेदन हीनता हो गयी है की दूसरों के लिए चिंतित ही नहीं है, हमें तो केवल टेलीविजन पर बल्ले मारते याद है. बाजारों में हम भी बिक रहे है हम उल्लू बन रहे है, कहते है टेलीविजन पर की अगर आप क्लोजप से ब्रश किया है तो कोई भी प्रेम की घटना घट सकती है" यहाँ तो बाहर की जिन्दगी की कोई वास्तविकता नहीं है.
एक बार जब बापू ट्रेन से कहीं जा रहे थे और उतरे तो उन्होंने देखा की सामने एक महिला नदी के किनारे कांप रही होती है और बहुत देर से बैठी है..बापू ने जब साथ के एक सहयोगी से इस बारे में पूछा तो पता चल कि वह महिला नहा कर आयी है और इसके पास केवल एक कपडा है जो कि उसने भिगो दिया अब जब तक वह कपडा सूख नहीं जाता तब तक वह ऐसे ही बैठी रहेगी...वहीँ से गाँधी जी ने संकल्प लिया, कि अब मैं भी एक ही कपडा पहनूंगा और वह लूंगी(धोती),  क्योंकि यहाँ सब एक जैसे है. एक बार जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल से बापू की मुलाकात होनी तय हुई ...चर्चिल सोचते थे कोई बड़ा, और मजबूत व्यक्ति है तभी यह बहुत चर्चित है. जिस कमरे में गाँधी जी का मिलना तय था, गाँधी जी जैसे ही कमरे में प्रवेश किये. चर्चिल उनके कपडे को देखकर जोर से डाटते हुए पूछा-

"कपड़े क्यों नहीं पहन कर आये'
बापू बोले "सारे कपड़े तो आपने पहन रखा है, हमारे लिए कुछ बचा ही नहीं, अगर ऐसा होता तो ये दशा होती"
आज पूँजीवाद हमारी संस्कृति को नष्ट कर रही है और हमारे खान-पान को भी ....अगर हमने इटली का खाना खा लिया तो हमें गर्व होता है और हम उसी का बखान करते फिरते है. हमारे खेल कबड्डी की जगह क्रिकेट है यहाँ तक हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी भी केवल कहने के लिए है. हमारे सारे खिलौने चाइना के हो गए है, हमारे  खिलौने नष्ट हो गए है. और बापू आप फिर भुला दिए गए है..

भाषा पर भी सवाल खड़ा हो गया है, पहले जो अपना छोटू हिंदी बोलता था अब वह अंग्रेजी बोल रहा है..उसे पता ही नहीं की कभी प्रणाम भी करना होता है...इस देश में जो नागरिक की जो भाषा है और थी वह हिंदी है परन्तु यहाँ तो सत्ता की भाषा नागरिक की भाषा से मेल ही नहीं खा रही, जब जहाँ  ८०% लोग हिंदी जानते है वहां अंग्रेजी भाषा अगर राज करेगा तो उनके लिए कैसे आजादी महसूस होगी और शासन चल सकेगा..गाँधी अंग्रेगी जानते थे परन्तु उन्होंने एक बार कहा था-
"अगर मैं तानाशाह होता तो अंग्रेजी को घंटे में इंग्लॅण्ड वापस पहुंचा देता"
नेहरु से आजादी के बाद कहा था "मै हफ्ते भर अंग्रेजी बर्दाश्त नहीं कर सकता"
जब देश में १६ अगस्त को झंडा फहराया गया तो एक बीबीसी का इंटरव्यू हुआ, तो उन्होंने अपना इंटरव्यू हिंदी में दिया. बीबीसी वालों ने कहा यह दुनिया में प्रसारित होगा आप हिंदी में इंटरव्यू देंगे अगर तो, कैसे लोगों को समझ आएगी. इस पर बापू ने कहा-
"दुनिया वालों से कह दीजिये गाँधी अंग्रेजी भूल गया है"
'अगर यह स्वराज लाखों करोड़ो लोगों की है तो भाषा हिंदी की होगी' और यह अब दुनिया में बोली जाने वाली तीसरी प्रमुख भाषा है.
बापू अब तो यह देश आपके संदेशों से बहुत दूर चला गया है...आप कहते थे की चरखा चलाओ, भला ऐसा क्यों कहते थे...कौन काम करेगा सब खाने वाले है..और तो बिना श्रम ही सब संभव है.....अरे आप तो इसलिए कहते थे की जिससे महिलाये और पूरा परिवार अगर श्रम करेगा तो रोजगार मिलेगा और कोई बीमारी भी होगी, खली बैठने से केवल मन में गलत विचार ही आयेगे. इसलिए आपने तो कहा था...लेकिन हमारा भाई कहता है यह कहा चरखा वाला जमाना है, यहाँ मशीनें है.
सारी चीजें तो रिमोट से ही चल जाती है..
बापू ने ठीक कहा था ये जो हरियाणा में रेप की घटनाये हो रही, इन्ही श्रम के होने से है
"श्रम से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से विकास होता है और लोग व्यस्त रहते है"  

बापू आप जो कहते थे की आदमी बचा रहे तो जिन्दगी बैलगाड़ी होगी, सही कहा था अब तो मनुष्य आपकी राह को छोड़, भटक कर बहुत पीछे चला गया है जहाँ जीवन तभी संभव है जब वह पहले वाली अवस्था में आएगा.बापू वह समय दूर नहीं जब आदमी बैलगाड़ी पर ही चलेगा या खुद नष्ट हो जायेगा.
भ्रष्टाचार, गरीबी लाचारी का पता नहीं बापू क्या निदान होगा? इस देश का भविष्य कैसे प्रजातंत्र सुनिश्चित कर पायेगा? यह नोट जो आपको और हमको बेच रहा है, कब ख़त्म होगा? कब यह देश अपने आप में अन्य देशों की तुलना में अधिक महान कहलायेगा? कब तक यह धरती बिलियन लोगों का भार सहेगी? कब यह परिवार तंत्र हटेगा? माफ़ करना बापू! आज नहीं, लेकिन जल्द ही ऐसा समय आएगा जब दीवारों और नोटों में पड़े रहने से आपको स्वतंत्र होना पड़ेगा और आपके मूल्यवान और विद्दुतापूर्ण विचारों  की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराएगा.   

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