Tuesday 10 October 2017

तुम थे जमाना था

तुम थे जमाना था, जमाने में सब कुछ था
यकीं मानो कुछ नहीं, तो आईना भी खुश था
अब तो सिरदर्दियाँ इतनी है, धूप में भी बादल है
बादल की गरज और बिन मौसम बरसात है
जब भी तुम्हें सोचू, लगता है वहीं सब कुछ था
तुम थे.....

अक्सर जब तुम्हारी जुल्फें दिखती हैं
काली आंखों से तुम्हारी नजरें मिलती हैं
हल्की सी मुस्कुरा देती हो बेसुध हो जाता हूँ
ये सब कहीं और नहीं आईनें में होता है
आँखें अब भीग जाती हैं, पहले गम न था
तुम थे......
हर तरफ तुम्हारे इशारे पर लेता हूँ करवटें
तुम्हारे जाने पर भी तुम्हारा नाम है लबों पर
जितना मैं सोचता हूँ, बता दूं तो सच न लगेगा
दुनियां पागल समझती है, तुम्हें भी लगेगा
सुखाने को आंसू, तुम्हारा चेहरा काफी था
तुम थे......
प्रभात
#सचनामा
तस्वीर गूगल साभार
 23/09/2017


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