Monday 29 August 2016

विहान आया है

अब फूल बनकर खिलखिला दो
आंसुओं में मुस्कुरा दो
विहान आया है
फिर से प्रभात आया है
गूगल  से साभार 

वो संध्या भी छिप  गयी
वो हमारी तारा भी छिप गयी
नेह, स्नेह देकर सितारा भी छिप गयी  
इस पतझड़ में नया राग सुना दो
फिर से ऋतु बसंत ला दो
अब फूल बनकर खिलखिला दो
आंसुओं में मुस्कुरा दो
विहान आया है
फिर से प्रभात आया है 

राधे! प्रीत की लगन है
प्रेम में कोई भी मगन है
अब कृष्ण भी तो रंग है
भावों को ही खूबसूरत बना दो
कलकल करती नदियों की
और पर्वत की बाहों में
खुद का अहसास करा दो
अब फूल बनकर खिलखिला दो
आंसुओं में मुस्कुरा दो
विहान आया है
फिर से प्रभात आया है

-प्रभात "कृष्ण"



  



2 comments:

  1. आंसुओं में मुस्कुरा दो
    विहान आया है
    फिर से प्रभात आया है

    बहुत ही सुन्दर, शीतल, कोमल रचना ! वाह !

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  2. आपको देख कर खुशी हुई, मन प्रसन्न हो गया और मेरा लिखना सार्थक हो गया।

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