मजदूर
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-गूगल से साभार |
दौलत का मारा हूँ, बेचारा हूँ, मगर काम करता हूँ,
सर्दी हो या खूब गर्मी पसीने में ही आराम करता हूँ,
इंसा के लिए इंसानियत के कब्र को सलाम करता हूँ,
रोता हूँ जी कभी, तभी रोने वाली की फिकर होती
है,
मेरे नाम पे हुए घोटाले से, हर रोज की जिकर
होती हैं
अभिनेता बने नेताओं ने मुझे अभिनय मे
लूटा है जब-जब
मज़हब व मुझ पर सियासत में कतल होता है
महंगाई पे मजरूह है मेरी भूखे बेटियों
का आमाशय
मेरी सांसे रुकती है तेरे दिल्ली की
उड़ान पर भय से ऐसे
पहुंचकर विदेश जो मरहम लगाते हो वहां
की संसद पर
उनकी कुर्सियों का खर्च भी मेरे गाँव
के पसीने से आता है
अब तक जो वाहवाही लूटी है तुमने अपने
वक्तव्यों से
उसमें संसद निर्माता की आत्मा रोती है
हर सदन पर
चुप रहता हूँ दाल की महंगाई पर और पानी
खरीदता हूँ
मैंने सींचा अरहर, इंसा के नाम का बीज हर बार बोता हूँ
तुमने मारा है मुझे महगाई में और
नफरतों के बीज बोकर
कभी प्याज, कभी
पानी पर तो कभी गन्ने पर मर जाता हूँ
कितना बड़ा बेवकूफ हूँ मैं, फिर भी नेता तुम्हे ही चुनता हूँ
तभी हर रोज कतल होता है, शवों पर दलबदल होता है,
मेरी मासूमियत पर खरीदफरोख्त, देश के लिए बोझ हूँ,
मैं चुप हूँ, जिन्दा
हूँ, गरीबी है, बेरोजगारी है, चोरी है
इससे मेरे गाँव,परिवार,
देश की प्रगति में खलल होता है
आजादी के लिये कुरबान शहीदों से दगल
होता है,
तुम्हारा क्या सम्मान तुम देश का
सम्मान ही नहीं करते
मैं भी कलंक हूँ, मगर रंगमंच का दर्शक, पृष्ठभूमि हूँ
मैं गरीब हूँ, मगर
रोटी के लिए मेहनत करके कमाता हूँ
-प्रभात