हे बारिश! तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारी राह
देख रहा था
मुझे मेरे प्यारे दोस्त के मिलने की तरह है
देखो मेरे चेहरे की रौनक
मेरे अब दुबक कर बैठने
और मेरे बाहों का अंदाज़
तुम्हारी तरल बूंदों सा उपहार मेरे हाथों पर
है
देखो कैसे वृक्ष अपने पत्ते फैला लिए
फूल अब हंसने लगे
जड़ें ऊपर से ही नजर आ गईं
जड़ें ऊपर से ही नजर आ गईं
और छाल में अब रंग पहले की तरह है
हे बारिश! हम (वृक्ष) तुम्हारे इंतज़ार में अब
तक खड़े हैं
देखो पंक्षी कहा छिपे हैं
कुछ बोल रहे हैं
कुछ गा रही हैं
और कुछ चैन से सो रहे हैं
कुछ बारिश में भीगकर आनंद ले रहे हैं
हे बारिश! तुम्हे पता है कि हमें तुम्हारे आने
की प्रतीक्षा थी
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देखो खेत हमारे
धान की रोपाई और
कागज के तिकोने नाव
कैसे हैं चौराहों के चाय
हे बारिश! तुम्हे पता था कि सब तुम पर ही निर्भर हैं
तुम आये और बिना निमंत्रण के
बिना बाधा के
बिना किसी स्वार्थ के
बिना किसी बदलाव के
उसी साज और बाज से
हे बारिश! तुम्हे पता था कि हम तुम्हारे बिना
अब तक कैसे थे.....
-प्रभात