मेरे ऑफिस की
वो लड़की।
हाँ मजाक मत
उड़ाना, तुमसे एक बात पूछुं.... उसने ऐसे कहा था
जैसे वह कितने दिनों से जानती हो।
मेरे मन में एक सवाल उठा कि आखिर ऐसा क्या कहने वाली है?
मेरे मन में एक सवाल उठा कि आखिर ऐसा क्या कहने वाली है?
कुछ बोलता
इससे पहले उसने अपने दोनों हाथों से मेरी कलाई को पकड़ जोर से अपने तरफ खींच लिया।
कुछ समझ पाता इससे पहले उसने कहा... आओ तुम इधर देखो यह बिल्ली देख रहे हो कितनी
क्यूट है?
मैं उसके
चंचल मन को देखकर बस इतना ही अंदाजा लगा पाया कि हम भी इतने ही क्यूट होते, ऐसी ही सोच होती तो आज इस वाकये को लेकर इतना रोमांच न जगा होता। भीतर से
डर और उससे बढ़ रहीं साँसे निरंतर उसी तरीके से गतिमान होतीं जैसे वह सामान्य रूप
में होती हैं।
लेकिन हां, अब मुझे उत्तर भी देना ही था....हां वह बहुत क्यूट है लेकिन तुमसे कम
उस लड़की ने
मेरी तरफ सिर घुमाया ....क्या मैं क्यूट ....हूँ। अच्छा मतलब मैं तुम्हें...
इतना ही कहा था, तुरन्त मैं बोलने के लिए हल्का सा शुरू हुआ कि मुस्कुराहट के साथ एक ही बात मुँह से निकली.....तुम, तुम तो मुझे कभी पसंद ही नहीं आते, मतलब तुम मुझे नहीं पसंद।
उसने भी झट से यही कहा....अच्छा तुम भी मुझे नहीं पसन्द, चिढ़ाते हुए बोली।
इतना ही कहा था, तुरन्त मैं बोलने के लिए हल्का सा शुरू हुआ कि मुस्कुराहट के साथ एक ही बात मुँह से निकली.....तुम, तुम तो मुझे कभी पसंद ही नहीं आते, मतलब तुम मुझे नहीं पसंद।
उसने भी झट से यही कहा....अच्छा तुम भी मुझे नहीं पसन्द, चिढ़ाते हुए बोली।
विवेक शून्य
और अथाह सागर की तरह मेहरबान तरंगों जैसी काली आंखें मुझे छूने के लिए तड़प उठी
थीं। मुस्कुराते हुए चमकते दांत मोती की तरह उस सांवली सी सूरत पर इतनी गहराई से
चढ़े हुए थे कि उसकी परछाई मेरे चलने पर बार-बार मेरे सामने दिख जाती थी। वो ऑफिस
की लड़की भी न...क्या क्या पूछती है....बिल्ली क्यूट है....वो चाँद देखो,---- पगली कहीं की कभी ये नहीं सोंचती शायद कि वह सब झूठ बोलती है....सच तो यह
है कि उससे सुंदर बिल्ली तो क्या चाँद भी न है। उसकी मुस्कुराहट पर ये सभी टकटकी
लगाकर देखते रह जाते हैं।
ये प्यार
है....
प्रभात का सुप्रभात
प्रभात का सुप्रभात