जब भारत की संस्कृति का विश्व में स्थान हो
जब रहन-सहन खान-पान में देशी लगाव हो
जब विविधता में एकता का प्रत्यक्ष प्रमाण हो
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जब बोली, भाषा का दूर–दूर तक प्रसार हो
तो कौन सा समय है संस्कृति से खेलने का
राजनीति में प्याज और अरहर तौलने का
किसानों की जमीन को तराजू में रखने का
देख नहीं रहे भारत की गरीबी भूखमरी को
कैसा संसद में बैठने बनने का अभिमान है
जाती-पाति से वोटो के लिए बेतुका बयां है
देश के विकास के भागीदार सभी समझ लो
किसानों की आत्महत्या के परिणाम देख लो
किसान अन्नदाता भूखा अब तक सो रहा
गन्ने उपजाने वाला केवल कर्ज में डूब रहा
जब भारत की दाल रोटी पर विदेशी छाप हो
जब गन्ने के गुण पर रसोईयों का गुणगान हो
जब बाजरे की रोटी और साग पर बाजार हो
तो इस स्थिति के लिए किसान क्यों बर्बाद हो
आजाद भारत में फ़ैली गरीबी में हिस्सेदार हो
जब यही की संस्कृतियाँ पूरे विश्व में जा रही
हो
जब गाँव की परिभाषा का विस्तार हो चला हो
जब देश की महानता में सभ्यता दिख रहा हो
तो अपने ही देश में अब खतरे में क्यों है सभ्यता
मानवता की परिभाषा से दूर हो रही है सभ्यता
लड़कपन में बीमार करने आ गयी विदेशी सभ्यता
सभ्यता का पर्याय बन कर रह गयी अपनी सभ्यता
जब गुरुकुल की शिक्षा का प्रसार यही हुआ हो
जब नीति निर्माताओं का विश्व में नाम हुआ हो
जब प्रेम के लिए कृष्ण और महाभारत ग्रन्थ हो
तो मासूमों की जिन्दगी में आज आग लग गयी है
क्यों बेटियों की जिन्दगी भी दांव पर लग गयी
है
धर्म को लेकर क्यों निर्मम हत्याएं आज हो रही
है
जवाब है बहुत सारे समझ लो बस यही सभ्यता
अपने गाँव या शहर में बस चुन लो अपनी सभ्यता
-प्रभात