Sunday, 30 August 2015

उपस्थिति में अनुपस्थिति का आभास कर ले..........

उपस्थिति में अनुपस्थिति का आभास कर ले
युद्ध को शीघ्रता से विराम कर ले

झगड़ा नही है कोई मानव धर्म
महाभारत से जाना है धर्म-अधर्म
जीवन के कुछ दिन बेहिसाब मिले है
खुशियों के लिए सौगात मिले है
दो-चार दिनों में सम्पूर्णता का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(1)

जीवन है एक पतवार समझो
खेकर सही किनारे लगाकर देखो
मिलती है खुशियों का अनुपम उपहार
कुछ पा लेने और कुछ करने का साहस अपार
थोड़े में ज्यादे का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(2)

लक्ष्य दिखे बस अर्जुन जैसा
जो चाहे बन जाए वैसा
मोह-प्रेम और अपने में विश्वास रहे
क्रोध, जलन और भय से दूर रहे
असफलता में सफलता का आभास कर ले
उपस्थिति ................(3)

-प्रभात 

Monday, 24 August 2015

कुछ दर्द भरे गीत......

जुल्म सहने की आदत बना ली है
अब तो तुम बस सताते रहो
हमने मजबूरी में इरादा नहीं छोड़ा है
कभी तो इस काबिल बनेंगे
माफ़ करने के भी काबिल नहीं रहोगे
क्योंकि बदले की भावना होगी
पता है जान देंने पड़ेंगे किसी को भी
मुझे जान लेना भी कम पड़ेगा   
बेचैन है हमारे इरादे भी समय बगैर
जल्दी ही आ जाए अगर
सुधर जायेगी सारी बस्ती यूँ ही पल में
हर घर में दिया जगमगाएगा
प्यार में न जाने ये रुलाई कैसी है
अब बस तुम रुलाते रहो
लहू जल रहा है नस नस में अब तो
दुश्मनों तुम आतंक मचाते रहो
भूलेगी नहीं ये वर्षों की जिंदगानी
जुल्म ही जुल्म क्यों न ढाते रहो
जुल्म सहने की आदत सी बना ली है
अब तो तुम बस सताते रहो

-प्रभात 

Sunday, 23 August 2015

तुम्हारे प्यार में पागल रिश्ते वही पुराने है ....

तुम्हारी याद में भीगे पलकों की कहानी है
तुम्हारे प्यार में पागल रिश्ते वही पुराने है

पता है कभी जब तुम नाखुश सी दिखती हो
मेरे व्रत की पीछे की बस इतनी सी कहानी है
तुम्हारी प्रीत के मिलन के ये सच्चे बहाने है
डूबकर लिखे  डायरी के पन्ने वही पुराने है
तुम्हारे प्यार में पागल रिश्ते वही पुराने है

तुम्हारी मधुर राग के हम वर्षों से दीवाने हैं
पता है तुमसे बिछुड़कर कई गीत लिखे है
तभी तो अनजाने लोग भी मेरे दीवाने है
ये सब तुम्हारी यादों के सुन्दर से खजाने है
हमारे लफ़्ज़ों पर सजे हजारों तराने है
तुम्हारे प्यार में पागल रिश्ते वही पुराने है 
 -प्रभात 

Tuesday, 18 August 2015

दादा जी के नाम एक पत्र

पूजनीय दादा जी,
कितने दिनों बाद आप से मुलाकात हुई
खुले आसमान में ही खूब बात हुई
रात हुई और मन की बात हुई
आप जब कल पढ़ा रहे थे
तो पढ़ाने की बात एक गुरूजी से ध्यान आया
 -गूगल 
तभी तो आप भी बहुत मेहनत से पढ़ा रहे थे
हालांकि आप और गुरूजी साथ दिख रहे थे
आपका स्नेह बच्चों पर मेरे प्रति स्नेह ही था
परन्तु उसमें भी आपके साथ एक और रूप था
वे मेरे दोस्त के सामान दिख रहे थे
तभी तो उस स्नेह में आप दिख रहे थे
मैं तो आपको देख बहुत मुसकरा रहा था
मेरे सामने आप जितने देर तक थे
लग रहा था उसे सेल्फी में कैद कर लूँ
अब तो पढ़ाते हुए आपके साथ मुझे दिखना था
संग मेरे मुझे अपनी बहन को कैद करना था
माँगा था सेल्फी लेने के लिए फोन
लगा था कुछ इमोशनल सा टोन
पता था मुझे जैसे की यह मौका है साथ होने का
सारी बातें पिछली मिलन का रिकैप होने का
परन्तु थोड़ा सा मैं बुद्धू हूँ
मुझे नहीं पता था कि नींद में हूँ
पर उस छड़ का लगाव आपके प्रति असीम प्यार दर्शाता है
आपके डांटने के अंदाज में भी झलकता प्यार दिखाता है
दादा जी, यह कोई पहली मुलाक़ात नहीं है
आप नहीं है तो भी न होने का अहसास नहीं है
तभी तो हर स्वप्नों में हम मिलते रहते हैं
और आप–हम हँसते रहते हैं
कुछ सिखाते है और कुछ दुहराते है
लगता है मुझे और बात करना शेष है
कुछ कहना और कुछ सीखना है
तो आप ऐसे आते रहिएगा
अपना हाल सुनाते रहिएगा
यहाँ सब कुशल मंगल है
बस ७ में से ६ गाय कम है
बाकि आम की आपने कमी नहीं होने दी है
अमरुद, आंवला, लीची, बेल, करौदा, तूत सब लगा कर दिया
तभी तो मैं स्वस्थ हूँ
बन्दर, मोर कहते मैं भी मस्त हूँ
अच्छा दादा जी विदा! फिर मिलते है
आपका प्रिय पौत्र

-प्रभात   

Monday, 17 August 2015

कुछ दर्द भरे गीत.....

जिस-जिस से मैंने प्यार किया
वो प्यार कहाँ, एक सपना था
 -Google
प्यार के बदले बस धोखा मिला
वो इंसान कहाँ अपना था

रह-रह के यादों में देखा था,
सुन्दर अपनी निगाहों में
रुक-रुक के ऐसे चलता था,
देख न ले कोई राहों में
उस पहले प्यार में पड़कर
असलियत ही कहाँ मालूम था
जिस-जिस  ..........

गिनती के कुछ लोग मिले थे,
मेरे जैसे हमराही को
हार में भी जिता रहे थे,
अपने सीधे विचारों को
जिधर भी मैंने पैर बढ़ाया
उधर ही फैला काँटा था
जिस-जिस ..........

गाता-गाता चल पड़ा हूँ ,
शहनाई ले उस तन्हाई को
प्रेम-प्रेम में लिख रहा हूँ,
दबी हुयी भावनाओं को
जिस-जिस को मैंने लिख लिया
उसे चाहा ही मैंने क्यों था
जिस-जिस ..........

-प्रभात 

Sunday, 16 August 2015

लगता है आपसे प्रेम हो गया है

लगता है आपसे प्रेम हो गया है

 -Prabhat
अब शांत हवाएं भी तेज-तेज चलने लगी है
वृक्ष के फूल भी उड़कर तेज बिखेरने लगी है
आज ही मधुमास आ गया है
लगता है .......

सूरज की चमक अब सामने पड़ रही है
कमल कली भौरों के सामने खुल रही है
अन्धकार में ही प्रकाश आ गया है
लगता है .......

चिड़ियों की चहचहाहट ने हमें जगा दिया है
आकाश-धरती तक जल संचरण करा दिया है
आँगन में ही अप्सराओं का समूह आ गया है
लगता है .......

लताएं झुक-झुक कर स्वागत करने लगी है
कोयल के स्वर में मोरनी भी नाचने लगी है
बांसुरी लेकर ही कृष्ण आ गया है
लगता है .......

-प्रभात 

Saturday, 15 August 2015

ये कैसी आजादी है?

हे शक्ति प्रदर्शक! हे जुल्म नियंत्रक!
ये कैसी आजादी है?
गरीब कहाँ अभी सोया है
कूड़ा करकट में खोया है
भूख की ऐसी लाचारी है
जीवन बना नर संहारी है
मैंने जुल्म सहा है बचपन से
अब मैं केवल अपराधी हूँ
मैं दोषी हूँ पहले निर्दोष था
यहाँ लोग ही अन्यायी हैं
ये कैसी आजादी है ?

हे प्रधानमंत्री! हे मुख्यमंत्री!
संविधान संशोधन करने बैठे
जन-धन को केवल लूटने बैठे
जनता जब अनशन पर बैठी
पुलिस लाठियां लेकर बैठी
लड़कियों पर पथराव हुआ
न जाने कितनों से दुर्व्यवहार हुआ
जान गयी तब सरकार मान गयी
प्रलोभन से जनता मान गयी
यहाँ सरकार ही अविश्वासी है
ये कैसी आजादी है?

हे अधिकारीगण! हे संरक्षक!
गोलियां चली हैं निर्दोषों पर
गाज गिरी है कोरे कागज पर
शक्ति दिखी है निहत्थों पर
जो भारी पड़े है भ्रष्टाचारी पर
क्यों हत्यारों से कुर्सी चलती है
क्यों नेताओं से वर्दी हिलती है
रिश्वतखोरी खुलेआम है
पैसे व ओहदे से केवल न्याय है
यहाँ गुंडागर्दी है
ये कैसी आजादी है?

हे धर्मगुरुओं! हे राजनीतिज्ञों!
धर्म बनाना तुमसे सीखे
फूट डालना तुमसे सीखे
खजाना भरना तुमसे सीखे
व्यापार बढ़ाना तुमसे सीखे
वेश्यावृत्ति चलाना सीख लिया है
देश लूटना सीख लिया है
देश! ये कैसी लाचारी है
ये कैसी आजादी है?

-प्रभात 

Thursday, 13 August 2015

थोड़ा सा प्यार कर जिन्दगी संवार लीजिये...

अब भी समय है थोड़ा विचार कीजिये
थोड़ा सा प्यार कर जिन्दगी संवार लीजिये

जिन्दगी है ऐसी तूफ़ान यहाँ आते हैं
ढहने-ढहाने के विचार यहाँ आते हैं
घर के रूप रेखा से ही घर बचा लीजिये
नींव के जतन से ही मकान बना लीजिये

रिश्तों को संजोने के समय बहुत कम है
नफरत की ऊँचाइयों में दूरिया बहुत कम है
शब्दों को शब्दकोष से परख खूब लीजिये
प्रेम के परिणाम को तब आप देखिये

झगड़ों के भीड़ में प्रेम शब्द खो गया
मतलब की आड़ में सदाचार कहीं सो गया
जो कहतें है आप वो आप भी कीजिये
थोड़े से सद्व्यवहार से जग जीत लीजिये

परेशानियों में धैर्य रखना होता है
भाग जाने से बैर रखना होता है
सम्मान दीजिये और सम्मान लीजिये
व्यक्तिवाद से हटकर समूह मान लीजिये

-प्रभात  

Tuesday, 11 August 2015

परिवार....

घर के बीच में दो किवाड़ लग गए है
रिश्तों-रिश्तों में कीटाणु लग गए है
बोली-बोली में जहर के लार लग गये है
देखने से बनावटी परिधान लग गये है

सास-बहु में ऐसे विकार लग गए है
दिन भर मनाने में सारे परिवार लग गए है  
चेहरों पर चमक की जगह आग लग गये है
प्राईवेट-सरकारी समझौतों के दुकान लग गये है

पति पत्नी के रिश्तों में तलवार लग गये हैं
कई-कई नसमझ सवाल लग गये है
बच्चों पर इन रिश्तों से कुठाराघात लग गए है
झूमते परिवारों में रोने के तार लग गये है

रहन-सहन में अलगाव के बयार लग गये है
किलकारियों में रोने के आवाज लग गये है
श्रृंगार में आधुनिकता के पाँव लग गये है
बाजारों में ऋण के सवार लग गये है

खान-पान में संक्रमित विचार लग गये है
रोटी की जगह मैदे में ही अचार लग गये है
जिम में ही बैठे इतने तनाव लग गये है
लाईनों में कई-कई बीमार लग गये है  
-प्रभात   

Monday, 10 August 2015

इस अन्धकार का गुनहगार मैं ही हूँ ...

सुलगता रहा दिन-रात बस चिंता बनकर
मेरी मौत का जिम्मेदार मैं ही हूँ
मुझे नफरतों ने जलाया
मुझे द्वेष ने जलाया
मुझे अभिमान ने जलाया
मुझे भेदभाव ने जलाया
मेरी बाती में प्यार जल रहा तेल बनकर
इस अन्धकार का गुनहगार मैं ही हूँ 

इन हवाओं ने भी मुझे जलने से रोका है
अपने ठंडेपन से ही कुछ नया सोंचने पर मजबूर किया है
बारिश ने मेरे देह को भिगोया इतना
भूल जाऊं जिससे मैं तूफ़ान की बात
मुझे बचपन की खुशियाँ दी है एक खिलौना बनकर
मेरे न खेलने का जिम्मेदार मैं ही हूँ

-प्रभात 

Sunday, 9 August 2015

और थानेदार बड़े मक्कार हो गए है..

सच और अभी हाल के ही एक प्रकरण पर आधारित-

आजकल के सिपाही भी थानेदार हो गए हैं
और थानेदार बड़े मक्कार हो गए है

जहाँ देखिये वही १० रूपये के नोटों का नाता है
रेहड़ी, पटरी, दीन दुखी को लूटने का इरादा है
यहीं पर सारे वर्दी, नली फोर्स इस्तेमाल हो गए है
अशिक्षित दुर्बल को पहचान कर मालामाल हो गए है

किसी सज्जन ने भ्रष्टाचार और हत्या की शिकायत कर दी
तो उस पर ही ३०२, ४२० से IPC की वकालत कर दी
न्यूज पेपर में आज के गुंडे कोर्ट से बरी हो गए है
और सज्जन गांजा के साथ गिरफ्तार हो गए है

रात को चोरी हुयी दारोगा जी सो रहे है
कभी गए किसी बार में तो रम से फन हो रहे है
शक्ति के कलम अब सफ़ेद कुरता में फंस गए है
और चोरी बदमाशी के पक्के साझेदार हो गए है

FIR दर्ज करो साहब कुछ लोगों ने हमें मारा है
अब देखो भाई उलटे दरोगा जी ने मुझे थप्पड़ मारा है
FIR तो जैसे थाने से नीलाम हो गए है
और उलटे ही संरक्षक की बजाय भक्षक हो गए है

जुल्म कबूलवाने वाले का जुल्म कैसे कबूलवाओगे
किसी गांव में अन्धकार में इनकी स्टिंग कैसे करवाओगे
जब चोरो के तार थाने ही जुड़ गए है
और इनके कप्तान अपराधी-मंत्री जी हो गए है  

सबसे पहले कानून के लूपहोल्स को मिटाना है
सख्त कार्यवाही करते हुए इन्हें ही तिहाड़ पहुंचाना है
क्योंकि आजकल दारोगा जी अपराधी बन गए है
और सज्जन आतंकवादी बन गए है

-प्रभात