Thursday, 30 October 2014

मेरी प्रेम कहानी से ............

निस्तीर्ण हुआ तो क्या हुआ स्नेहिल स्पंदन जब है कायम।
गूंज रहा प्रतिध्वनि लेकर वह, रू-बरू रहा अब तक रूपायन।।

                                                                                                -Google image

देह दैविक मानो हुआ जो उनका, पर दैन्य से स्मरण हो रहा।
साँसों के सारंग स्वर से उद्वेलित है सत्यम शिवम् सुन्दरम।।

                                         
                                                -“प्रभात”

Wednesday, 22 October 2014

एक दीप जले पर मन से, खुशियों के दिए जलाना है।

 सूरज की राहों में अचरज आज अन्धकार ने डाला है, 
तभी शत्रु के आने से पहले मानो पहले दूर हो चला है


मेरे घर के आँगन में खिलते फूलों में सायंकाल 
भौरें भी न जाने क्यों घर को वापस जाने लगे 
मीठे-मीठे रस के गुच्छे लेकर घर में लौटे जब, 
घर के आँगन में खूशबू ने ऐसा अहसास कराया हैं, 
मानों राम के वन से लौट कर आने का संकेत हो चला है  

प्यारी-प्यारी किस्सों से आज का प्यारा दिन बीता है, 
तभी दादी-दादा के चरणों में प्यार का बंधन न टूटा है 

सुन्दर मुस्कान भरी शाम हवा लेकर आया 
दीपों के ढेर में बिठाकर कुछ याद कराया; 
कहते हैं खलिहान हमारी समृद्धि को बताते हैं 
और तभी खेत हमारे दीपों से सजने की याद दिलाते है,
सब धर्मों ने अमावस्या की रात्रि को सुन्दर ही माना है

दिया और उनकी और भी छोटी लौ ने कैसा प्रकाश कराया है,
कि आज सूरज की घमंड को व्यर्थ साबित कर दिखलाया है

आओ थाली में दीपों को एक दिशा में सजाये 
तुम ले जाना पूरब को, मैं पश्चिम की ओर चली 
और कहीं पे भूल मत जाना रोशनी न दिखलाने को
खिड़की पर दो चार दिए और "घूर" पर ऐसा दीपक जलाना 
रात-रात भर नींद से उठे जब, तब भी ये बुझ न पाए 

ऐसा ही कुछ करना प्यारों तुम्हे, दिए ऐसी अब जलाना है, 
ऐसी काली रात में मेरे, तुम्हे दीपक बन कर जगमगाना है

कंद की सब्जी खाने को कितना दिन इन्तजार किया 
कुछ मीठा हो जाये अब, फिर मिल कर आँगन की और चले 
देखोगे तो घंटी तले दीपक, ऐसे काजल बना रहे होंगे 
जो हम सबके आँखों के सपने को बतला रहे होंगे; 
घूम-घूम कर दिन भर आज पढ़ कर याद किया था 

सच में दीवाली मुझको अब कितना कुछ कहने को कहता है, 
क्योंकि ये सब पुरानी यादों के गुलदस्तों से होकर आता है 

अच्छा यह तो देखो कंडील कैसा लहरा रहा दूर तलक
खुश हैं लोग उनके लहराने पर मानों चीन ने खरीद लिया उन्हें 
चंद ख़ुशी की खातिर कैसे बम से बच्चे शिकार हुए
क्या यही चंद खुशी वो मिट्टी के दीप सिखा रहे, 
सीखो और बदलो अपने आप को, घी के दिए जलाकर

हमें पुरखों की सुन्दर सोच को कहीं मंच पर लाना है, 
एक दीप जले पर मन से, खुशियों के दिए जलाना है
                         
                              -"प्रभात"  
     









   

Sunday, 12 October 2014

दोस्त मुझे पता था कि एक दिन वहां पहुंचोगे

हाँ शायद न समझ आये कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ और किस सन्दर्भ में... पर मेरे दोस्त तुम्हे यह अहसास हो जायेगा जब तुम पूरी लाईनों को एक बार एक सांस में पढ़ते चले जाओगे, याद रखना कवितायेँ सोच कर लिखी नहीं जाती है यह मेरी कलम अपने आप लिख डालती है और मुझे लिखने के बाद अहसास होता है कि कोई कविता लिख उठी है ........ 

मुझे पता था कि एक दिन वहां पहुंचोगे
जहाँ यकीं नहीं होगा हम सबको
तुम्हारा साथ रहना सागर की उस लहर जैसा था
की तुम आये और फिर जल्दी ही चले गए
न जाने कितनी चीजों को साथ बहाकर लाये थे

कुछ तरंगो जैसा प्यार मिला और कुछ स्मृतियाँ
बहुत कुछ सीखा ऊँची-नीची लहरों से तुम्हारे
तब समझ ना सका था, तुम्हारी बातों को
नहीं पता था कि तुम मुझे ये सब समझा पाओगे

तुमने छू सा लिया मुझे अपनी यादों से
मजबूर हुआ कुछ कहने को इन लफ्जों में
पता नहीं कब तक, मेरी लाईनें लिखेंगी हर उन यादों को
जिसे गूथकर चले गए उन सुन्दर धागों से
नहीं पता था मुझे तब कि इतना कुछ कहलवाओगे

हाँ.. तुम अच्छा करना वहां सब कुछ
मजबूर करना उन सबको पास आने को,
जो तुम्हे कभी नहीं समझ पाए थे
चलेंगे तुम्हारी राहों पर बीते अनुभव को ले साथ सदा
भरोसा है तुम पर, आगे इतिहास में भी पढ़ें जाओगे
                              
                             "-प्रभात"




Tuesday, 7 October 2014

हमरे देशवा के तब तस्वीर बदलि जाई ।

 अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। मन में आ रहा था कि क्यों न इस बार इसका एक प्रयोग अपने रचनाओं में करूँ. बहुत दिनों की यह मन की उपज आज कुछ पढ़ने के लिए आपके सामने प्रस्तुत है...........

जब हमरे नेता जी के परिभाषा बदलि जाई
हमरे देशवा के तब तस्वीर बदलि जाई  


कहत हैं कि हम नेता होई, काम करक होई हमरे खातिन
कोनो दिक्कत तुहकै होई तो थोड़ी फोन घुमावक होई
गलत से गलत काम कई साथ एई देहिये
जेलिया में अपनें जगह कोहू अऊर के पहुंचाई देहिये
जब हमरे नेता जी कई अधिकार समझी आयी  
तबे हमरे गऊआं के बयार बदलि जाई 


हमरें गउआ में पढ़े लें जो, वऊ मनई के काम न करे पाई
आठ-दस पढावे के बाद, रहिया वनके बदलि दिहल जाई
स्कूलवा में बस फिसिया दिहल जाई
पढ़यिया के लिए कोचिंगया जरुर जाईल जाई
रतिया में बिजलिया कै दर्शन कहियों न पाई 

ई सब काम होई, कही के बस नेता जी वोट बटोरी लिहे
काम करिए के तो बाई नाही, एसे पांच साल गुजरी जाई
जाने थे वउ की हम्मे कोहू न पूछी,
जावूने दिन इ सब सुधर जाई
मंदिर अउर मस्जिद कए हर तरफ लड़ाई छेड़ देवे
खेतवा में कहूँ गोली बारी चली जाई 


सिर फोडुआ के कचहरी में घर बिकवाए यही
अउर तब जज के पैसा दई के न्याय दिहल जाई
ए असलियत के वजह से देशवअ आगे बढ़त बाय कहाँ
 जाने काहे विकासरत कही दिहल जाई
नेता जी के मोहल्ला में चोरी होई जाई जब भईसिया के
पूलिसवन के कमवा सही रूप में तब सौंपल जाई 

हमरें यहाँ आग लगे जब, 
दमकलवा कै आवत-आवत गऊआ जली जात हे
हर नुकसान के भरपाई हमरे,
फसलियाँ बेचे के मिली पाई
बतावा देशवा में बढ़त आबादी हमरे कोने काम आयी 

चुनउआ आउते ही लगत है सब कितने ईमानदार हैं
अब देखा विदेश के कूटनीति हमरे जनता से करत हैं
रोजगार देती हईन अईसे की बेगारी बढ़ी जाई
नेता के खातिन हम मनई के बीमारी बढ़ी जाई
दिना-रतिया काम कई के जऊं आपन पेट भरत हईं
वन्ही के नाती पोता के सरे आम मार दिहल जाई
तो बतावा नेता जी अइसे हमार देशवा बढ़ी कईसे पाई 
                                       
                                       -"प्रभात"