वो दिन भी क्या होगा
जब सूरज कहीं और होगा
सुबह न होगा, ना होगी शाम
केवल चेहरा उतरा सा और गगन सूना सा होगा।
उन तारों का क्या होगा
जो झिलमला कर दिख जाते थे
न सतरंगी दुनिया होगी, ना होगा चाँद
बस यादों का एक गुलदस्ता और बिखरी सी बातें होंगी ।
चहचहाना चिड़ियों का कहाँ होगा
जब नीर धरा पर बदला सा होगा
न वे वन होंगे, ना उनकी सुन्दर लकड़ियाँ
बस सूखी घासें और उनके पुष्प गिरे से होंगे ।
उन घरों का क्या होगा
जहाँ सूरज कभी निकला रहा होगा
न वो हंसी होंगी, ना हंसनें का कारण
केवल पन्नों में लिखी बातें और उनका आत्ममंथन होगा ।
वो चेहरे कैसे बदले होंगे
जो कभी रोये और कभी हँसे होंगे
सैकड़ों आँखे तब नम होंगी
बस एक आईना होगा और उसमें "प्रभात" और उसकी ये कविता होगी ।
-"प्रभात"