Tuesday 23 December 2014

देश-प्रेम

कड़ाके की सर्द रात जब हमारे ध्यान में आती हैं तब हम कमरे से बाहर निकले ही होते हैं और जब हम हो सो रहे होते हैं तब रात आसमान के नीचे खड़े होकर दुश्मन से रक्षा कराते हैं - सरहद के रक्षक और असली पहरेदार. मेरे दिल में उन सभी के लिए एक अलग सी जगह बनी रहती है. कोई भी कविता या लेख इतना काफी नहीं हैं जो कुछ बयां कर दे फौजियों की हसरतों और उनके अटल इरादों को. फिर भी मेरी कुछ पंक्तिया खास इन्ही नौज़वानों को समर्पित है..........(पहली कुछ पंक्तियाँ देशप्रेमियों की एकता का सन्देश हैं और अंतिम कुछ पंक्तिया उनके असीम, अटल विश्वास और हौंसलों को उजागर करने का प्रयास करती हैं).


रुको चलूँगा साथ तुम्हारे, अभी मुझे आ जाने दो
बढ़ता कदम रुक जाए, उससे पहले आजमाने दो
जमी हुयी बालू सर्द में, रात अनोखी प्यारी रंग में
किसी से लहू मिले हमारा, साथ हमें भी आ जाने दो
रक्त-रक्त में देशप्रेम और सौभाग्य से प्रेम तुम्हारा
मिले कहीं ये सुख अमृत में भी न, पास जो रह जाने दो

कैसी ममता कैसा प्यार, पूछो इस प्यारी मिट्टी से यारों
माँ के आँचल जैसी मिट्टी, अब यही पर सो जाने दो
रुक कर पूछे हवा हमीं से, कहाँ पे उड़ जाऊं मैं
धैर्य दिला कर आते रहना, यहाँ मुझे बिछुड़ न जाने दो   
कहना मैं लौटूंगा, जब इतिहास कहीं पे लिखा होगा
फूलों से लिपटी अर्थी जब हो, खुशी से जल जाने दो 
                                                       -प्रभात

5 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति।

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  2. ऐसे जवानो को शत शत नमन ...सुंदर प्रस्तुति।

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