Sunday 25 May 2014

विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठ रहे सवाल!

           विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठ रहे सवाल!


   वर्तमान में मिल रही विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता का ही परिणाम है कि आज फेसबुक, व्हाट्स एप्प, ब्लॉगिंग और अन्य माध्यमों का तीव्र गति से विकास होता चला जा रहा है. मैं खुद स्वतंत्रता का विशेष रूप से अनुयायी रहा हूँ चाहे वह किसी चीज को करने से सम्बंधित हो. हाँ वह चीज नैतिक रूप से की जाने के लिए ही हो. स्वतंत्रता का इतिहास हमारे दिल और दिमाग दोनों में कूट-कूट कर भरा और बसा हुआ है. यहाँ मैं केवल वर्तमान परिदृश्य में मिलने वाली विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर कुछ सवाल खड़े करना चाहता हूँ, जो बहुत ही संवेदनशील विषय मुझे प्रतीत होते हैं. 

   सर्वप्रथम मैं मीडिया पर उठने वाले नकारात्मक सवालों की बात किये बगैर उसके पीछे छिपे मूलभूत कारणों को सामने लाने का प्रयास करता हूँ. मीडिया के अनुप्रयोग से भली भाति आप सभी परिचित है. प्रेस की महत्ता को आज के सौ वर्ष के पहले से ही स्वीकारा गया है लोकतंत्र में सबसे पहले यही बात सामने आती है. यह सच है की मीडिया मीडियम का कार्य करता है. मीडियम या माध्यम:- जनता और देश की बागडोर संभाल रहे लोगों के बीच. इसी माध्यम का ही परिणाम रहा है कि धीरे-धीरे हम इसके एक स्वतंत्र ताकत के रूप में उदय होने की चौथी व्यवस्था मानने लगे हैं. अर्थात यह चौथी व्यवस्था लोकतंत्र में निर्वाचित सरकार, न्यायपालिका के बाद की मानते हैं. 
   मुझे यह कहने में संकोच नहीं है जिस तरीके से इसने भारत जैसे देश में अपने उदय की चौथी व्यवस्था को प्रमाणित किया हैं वह निश्चित रूप से धीरे-धीरे अन्य तानाशाही देशों को अपनाने के लिए बाध्य करेगा। मीडिया के विचारों की अभिव्यक्ति को माना जाता है की यह एक तरीके से जनता की हितैशी है क्योंकि जनता के सामने यह जनता की ही बात करती है. अब यह बात स्पष्ट रूप से साबित हो चुकी है की जनता को सहभागी बनाया जरूर जाता है और जनता के अनुसार मीडिया चलती है. 
   अगर हम बहुत चिंतन मनन करें तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मीडिया के अनुसार जनता चलती है जनता के अनुसार मीडिया नही. अब वह दिन नहीं रहा हैं जैसे पहले हमारे घरों में टेलीविजन नहीं होता था आज टेलीविजन तो गाँव-गाँव में फैल गया है. यह विकास का नमूना हैं परन्तु यहाँ ध्यान देने की जरुरत हैं यह विकास उपभोक्तावादी दृष्टकोण से हैं. इस विकास से जरूर फायदा मिला हैं  देश के कोने कोने की खबरों को सुनने में अर्थात मीडिया के विकास के उच्चतम प्रयोग करने में. पर क्या यह विकास महज बच्चों को बैठे-बैठे कार के गेम खिलाने, विज्ञापनों को देखकर बाजारीकरण के लिए, हमें समाचारों से विचलित करने, आत्महत्या करने को विवश करने और शक्तिमान की उड़ती प्रतिबिम्ब के साथ प्राण को उड़ाने या झूठी भ्रामक तथ्यों को पहुंचाकर मानसिकता को उलटी दिशा में पहुचाने तक के लिए ही किया गया है?
   भारत में मीडिया का ही कमाल हैं कि यह सत्ता के सिंहासन को किसी से छीन कर किसी के पास पंहुचा देता है. यह सबने देखा होगा की पिछले दिनों मीडिया ने अरविन्द केजरीवाल के २८ सीट लाने की वजह से उन्हें राजा की गद्दी पर बिठा दिया था और उन्हें फिल्मों की तरह एक नायक बना दिया था और आज गालियां ही गालियां उगल रहा है. यहाँ सभी के विचारों की दिशा एक जैसी नहीं हो सकती परन्तु अगर सोचे तो जो मीडिया जनता की हितैशी होने के नाम पर ही टिकी हुयी है अगर सोचे तो ऐसा लगेगा कि सच्चाई तो कुछ और है बस यहाँ मीडिया एक कंपनी है और यह अपना बिजनेस देखती है जनता का मत नहीं बस कुछ चंद लोगों की दादागिरी होती है. यह आलोचना इस समय मीडिया का करना देशहित में इसलिए जरुरी है क्योंकि कभी इसके स्वतंत्रता की बातें उठती थी और उठती हैं पर वास्तव में क्या यह स्वतंत्र है क्या जनता का पक्ष मीडिया में रखा जाता है या मीडिया का पक्ष जनता में?  
   विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरुरी है यह मैं ही नहीं हर कोई इस बात से सहमत होगा। परन्तु यह विचारों की अभिव्यक्ति सियासी रंग में इस तरीके से न रंग कर की जाये जहाँ दो परस्पर विचारधारों के लड़ने की सम्भावना हो, जहाँ धर्म और संप्रदाय के नाम हिंसा फैलने  का खतरा हो और जहाँ जनता के हित कि बजाय अपने अनैतिक हितों के स्वार्थ का सवाल हो. आज कोई साम्राज्य वादी ताकतों से लड़ाई का दौर नहीं है जहाँ हमारे विचार दबा दिए जाते हो. परन्तु लगता है कि यह वही दौर है सिर्फ अंतर इतना है यहाँ बिजनेस एक बहुत बड़ा कारण है और दूसरा कारण स्वार्थवादी मानसिकता से अनैतिक कामों में हिस्सेदारी। आज कल मीडिया में ख़बरों में "गुस्ताखी माफ" "सो सॉरी" जैसी परिकल्पनाओं का विकास देश के सामने क्यों लाया जाता है केवल मजाक बना कर कुछ लोगों का मनोरंजन कराने के उद्द्येश्य से या फिर इसका कोई विस्तृत बहुमुखी उद्देश्य है
   जरा सोचिये आपने कुछ लोगों का मनोरंजन तो करा दिया लेकिन यह बात बखूबी साबित कर दिया कि आप किस हद तक अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए जा सकते है. आप किसी का परिहास इस तरीके से उड़ा कर उनके बच्चों के सामने किस परिस्थिति का बोध कराते है?
   मीडिया का प्रयोग और उसके द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए उठाये जा रहे नए नवाचारों का स्वागत करना जरुरी है परन्तु इससे किसी अच्छे व्यक्ति को बुरा बताने की कोशिशो और किसी बुरे व्यक्ति को अच्छा बताने की कोशिशों के लिए नहीं होना चाहिए और जहाँ तक संभव हो व्यक्तिगत टिप्पणी करने की बजाय प्रेस/समाचार पत्रों की तरह के कार्टूनों का प्रयोग करना उचित और सार्थक कदम होगा। जनता की उम्मीदों को तोड़ने की बजाय उसके मनोबल को ऊंचा करने में हो. अगर ख़बरों की कमी हो तो बेवजह रंगीले और भड़कीले ताकतों का प्रयोग किसी के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में क्यों हो?
   मीडिया की स्वतंत्रता की व्याख्या हमारे द्वारा जिस तरीके से की जाती है उसमें कहीं न कहीं कमी है  इस कमी का ही परिणाम है जिन विभिन्न समस्याओं को मैंने अब तक रेखांकित किया है यह स्वतंत्रता अपने मौलिक रूप में पूर्ण रूप में नहीं है कहीं न कहीं यह दबी और कुचली है वह चाहे कुछ लोगों की सड़ी गली मानसिकताओं से या फिर उनके प्रभाव में आकर अपने स्वार्थ को प्राप्त करने के उद्देश्य से. अब जब आज मीडिया का प्रभाव वैश्विक स्तर पर है तो इसे बरकरार रखने के लिए ही हमें इन बातों पर गहन विचार करना होगा और इसके लिए अपने आपको माध्यम बनाना होगा।  

14 comments:

  1. आपका सुझाव अच्छा लगा..... तहे दिल से शुक्रिया!

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  2. बढ़िया लेख। बधाई

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    1. धन्यवाद...........सहयोग बनाये रखें!

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  3. बहुत बढ़िया सार्थक विचार मंथन प्रस्तुति

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    1. यहाँ पधारने के लिए शुक्रिया!

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  5. सच कहॉ .................

    http://savanxxx.blogspot.in

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    1. पधारने के लिए शुक्रिया

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  6. आपके इस लेख से मुझे कभी मदत मिली अपना प्रोजेक्ट बनने में। शुक्रिया

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